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लोकतंत्र का त्रिभुज और कविता !!

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मेरी चुप पर एक चांप लगा कर बनाया तुमने लोकतंत्र का त्रिभुज जिसके एक बिंदु पर संविधान है दुसरे पर संसद और तीसरे पर संविधान और संसद के जने भ्रम हैं संविधान, संसद और भ्रमों से घिरा आदमी केंद्र में बैठ ...

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लेखक के बारे में
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रिसर्च फेलो पत्रकारिता विभाग  बाबासाहेब भीम राव आंबेडकर सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी लखनऊ 

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Devesh Sharma
    17 अक्टूबर 2015
    Viyang-gyatmak shally mein, durdhasa ka jo aaina prastut kiya h....bahut khoob
  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    21 अक्टूबर 2015
    मासूक जैसे शब्द सबकुछ बता रहे हैं । नितांत सारहीन व अप्रासांगिक तथा राष्ट्र भाषा का कोई ध्यान न रखती कविता है ।
  • author
    कांत प्रेमातुर
    26 अगस्त 2019
    अलग दृष्टकोण। सही है
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    Devesh Sharma
    17 अक्टूबर 2015
    Viyang-gyatmak shally mein, durdhasa ka jo aaina prastut kiya h....bahut khoob
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    Satyendra Kumar Upadhyay
    21 अक्टूबर 2015
    मासूक जैसे शब्द सबकुछ बता रहे हैं । नितांत सारहीन व अप्रासांगिक तथा राष्ट्र भाषा का कोई ध्यान न रखती कविता है ।
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    कांत प्रेमातुर
    26 अगस्त 2019
    अलग दृष्टकोण। सही है