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लिखनी ही होगी एक कविता- विवेक मिश्र

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"लिखनी ही होगी एक कविता" लिखूंगा एक कविता अपने ब्राह्मण होने के अपराध बोध से मुक्ति पाने के लिए उन गुनाहों के लिए क्षमा मांगते हुए जो मैंने कभी नहीं किए किसी दलित के ख़िलाफ, हर हाल में लिखूंगा ...

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लेखक के बारे में
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विवेक मिश्र

परिचय-विवेक मिश्र 15 अगस्त 1970 को उत्तर प्रदेश के झांसी शहर में जन्म. विज्ञान में स्नातक, दन्त स्वास्थ विज्ञान में विशेष शिक्षा, पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नात्कोत्तर. तीन कहानी संग्रह- ‘हनियाँ तथा अन्य कहानियाँ’-शिल्पायन, ‘पार उतरना धीरे से’-सामायिक प्रकाशन एवं ‘ऐ गंगा तुम बहती हो क्यूँ?’- किताबघर प्रकाशन तथा उपन्यास ‘डॉमनिक की वापसी’ किताबघर प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित. 'Light through a labyrinth' शीर्षक से कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद राईटर्स वर्कशाप, कोलकाता से तथा पहले संग्रह की कहानियों का बंगला अनुवाद डाना पब्लिकेशन, कोलकाता से तथा बाद के दो संग्रहों की चुनी हुई कहानियों का बंग्ला अनुवाद भाषालिपि, कोलकाता से प्रकाशित. लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं व कहानियाँ प्रकाशित. कुछ कहानियाँ संपादित संग्रहों व स्नातक स्तर के पाठ्यक्रमों में शामिल. साठ से अधिक वृत्तचित्रों की संकल्पना एवं पटकथा लेखन. चर्चित कहानी ‘थर्टी मिनट्स’ पर ‘30 मिनट्स’ के नाम से फीचर फिल्म बनी जो दिसंबर 2016 में रिलीज़ हुई. कहानी- ‘कारा’ ‘सुर्ननोस-कथादेश पुरुस्कार-2015’ के लिए चुनी गई. कहानी संग्रह ‘पार उतरना धीरे से’ के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा वर्ष 2015 का ‘यशपाल पुरस्कार’ मिला. पहले उपन्यास ‘डॉमानिक की वापसी’ को किताबघर प्रकाशन के ‘आर्य स्मृति सम्मान-2015’ के लिए चुना गया. हिमाचल प्रदेश की संस्था ‘शिखर’ द्वारा ‘शिखर साहित्य सम्मान-2016’ दिया गया तथा ‘हंस’ में प्रकाशित कहानी ‘और गिलहरियाँ बैठ गईं..’ के लिए ‘रमाकांत स्मृति कहानी पुरस्कार- 2016’ मिला. मो-9810853128 ईमेल- [email protected]

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    Teku Vaswani
    05 मई 2020
    अगर आप ने स्वयं कोई अपराध नहीं किया है तो कहना ही काफ़ी है कि आपके पूर्वजों अथवा समाज के किसी अन्य ने अपराध किया है। आप उसे नहीं दोहराएँगे । उस अपराध वश जिसको जो क्षति पहुँची है उस की भरपाई करने में पूर्ण रूप से सहयोग करेंगे। यह मानना कि आप के समाज ने अपराध किया है, यह अपने आप में बड़ी बात है। बधाई
  • author
    हेम चन्द्र जोशी
    18 अप्रैल 2020
    प्रकृति ने भी चीज़ें बाँटी हुई हैं। वर्ग प्रकृति का हिस्सा हैं। भ्रम है चारों ओर और यह भ्रम जान बूझ कर फैलाया जा रहा है कि ब्राह्मणों ने यह विभाजन रेखा खींची है। अब कोई बता दे कि प्रकृति से प्राप्त फल आम विभिन्न वर्गों में कैसे बँट गया है? दशहरी, लंगड़ा, चौंसा, कठा, सफेदा या अन्य ? 🙏🙏
  • author
    शिल्पी
    18 अप्रैल 2020
    बहुत सुंदर गहरी रचना। चंद शब्दों में व्यक्त कर दी आपने उन सब की पीड़ा जो बिना गलत किये ही घृणा के पात्र बन गये हैं। बहुत बहुत आभार,,, प्रतिलिपी पर इतनी गहरी रचना डालने को। नमन आपकी सोच को।
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    Teku Vaswani
    05 मई 2020
    अगर आप ने स्वयं कोई अपराध नहीं किया है तो कहना ही काफ़ी है कि आपके पूर्वजों अथवा समाज के किसी अन्य ने अपराध किया है। आप उसे नहीं दोहराएँगे । उस अपराध वश जिसको जो क्षति पहुँची है उस की भरपाई करने में पूर्ण रूप से सहयोग करेंगे। यह मानना कि आप के समाज ने अपराध किया है, यह अपने आप में बड़ी बात है। बधाई
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    हेम चन्द्र जोशी
    18 अप्रैल 2020
    प्रकृति ने भी चीज़ें बाँटी हुई हैं। वर्ग प्रकृति का हिस्सा हैं। भ्रम है चारों ओर और यह भ्रम जान बूझ कर फैलाया जा रहा है कि ब्राह्मणों ने यह विभाजन रेखा खींची है। अब कोई बता दे कि प्रकृति से प्राप्त फल आम विभिन्न वर्गों में कैसे बँट गया है? दशहरी, लंगड़ा, चौंसा, कठा, सफेदा या अन्य ? 🙏🙏
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    शिल्पी
    18 अप्रैल 2020
    बहुत सुंदर गहरी रचना। चंद शब्दों में व्यक्त कर दी आपने उन सब की पीड़ा जो बिना गलत किये ही घृणा के पात्र बन गये हैं। बहुत बहुत आभार,,, प्रतिलिपी पर इतनी गहरी रचना डालने को। नमन आपकी सोच को।