मेरी इस हालत को देखकर माँ-पापा मुझे अपने साथ शहर ले आए| वहां भी मैं अपने उस स्वेटर को लिए रहती|माँ मेरे लिए सबकुछ करतीं ताकि मैं ठीक हो जाऊं| पर वक़्त के इस घांव को भरने में न जाने कितने साल लग गये|
सार्थक एवं सकारात्मक सोच की प्रेरणा देती हुई कहानी । मन को भीगो दे। पुरानी यादों को ताजा कर गई । हार्दिक बधाई शुभकामनाएँ आपको । अति सुंदर अभिव्यक्ति की है आपने ।
रिपोर्ट की समस्या
सुपरफैन
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वाह, सौम्या जी । लाजवाब कहानी लिखी है आपने।।
पर वो प्यार भरी थपकी झूठी नही बल्कि सच्ची थी पर हाँ, साथ मे दिया जाने वाला वो दिलासा "कुछ नही हुआ है तुम्हें" झूठा था।
और कहानियों की प्रतीक्षा में,
- स्वयं राज
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