उस दौर का वो मिर्जा ग़ालिब आज कहीं मिलता नहीं..
सुना है पानी के ना होने से कहीं गुलाब खिलता नहीं..
चाहत हो चमन की तो उसके रंग में रंगना सीख लो..
बारिश का मौसम है गर, थोड़ा थोड़ा तुम भी भीग लो..
एक एक पल मेरे हाथो से फिसलता यूं जा रहा..
ग्लेशियर था मैं कभी, नदी में मिलता हूँ जा रहा..
अगर होता संजय उसको जरा सा भी प्यार मुझसे..
उसके हावभाव से जाहिर होता ना कि इजहार से..
कुछ होकर भी कुछ नहीं, खुश होकर भी खुश नहीं..
ये इंसानी प्रवृति, ना मैं अछूता ना कोई माकूल ही..
मेरा मुझसे पूछ रहे सवाल, इसका जवाब क्या दूँ..
आईने को अक्सर अपना अक्स दिखाई नहीं देता..
जीवन ही जीवन की इकलौती परिभाषा है..
कहीं डूबने का डर तो कहीं जीने की आशा है..
आप आये मिलने और आपके चेहरे से नजर हटे..
ये असमान्य घटना है जो कभी भी ना घटे..
फिर वही रोज के बेरंगी जीवन पर सवार हूँ अभी..
उतरने दो मुझको तो पता चले बाहर का माहौल..
शाम की सजावट का असर सुबह तक रह गया..
वो शख्स 1 पल आया और दिल में ठहर गया..
दो पल की दो पल में कट रही बात..
जिंदगी का सिलसिला दो पल का नहीं..
आईने की तरह नहीं जिंदगी के रूप रंग..
पग पग पर मखोटे है, बदले बदले से ढंग..
मिट जाती है हाथ की लकीरे हथेली से..
कौन कहता है लकीरे पत्थर की होती है..
किस तालीम की जिक्र ओ आब में बहू..
कि कश्तियो के साहिल सब एक जैसे है..
तेरी बातो का मेरी बातो से तालुकात कैसे..
चाँद की ना हो दिन से एक मुलाकात जैसे..
रिपोर्ट की समस्या