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लंकेश्वर रावण

4.8
204

नीले रूपहले अम्बर पर धुँए का वर्चस्व बढ़ता जा रहा था । किंचित दम घुटने से, पश्चिमी दिशा से , दैदीप्यमान मार्तण्ड भी अस्ताचलगामी होने लगा था।  हवा में राख के सूक्ष्म कणों का, साम्राज्य गहरा हो रहा ...

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लेखक के बारे में
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संध्या बक्शी

किताबें क्या लिखें , और क्या जोड़ें, काव्यांश में , कहानी मेरी ,सिमट गई ,'भूमिका' और 'सारांश' में !

समीक्षा
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  • author
    navneeta chourasia
    27 अप्रैल 2021
    रचना में प्रस्तुत प्रसंग किंचित भिन्नता के साथ अपने पिता जी के श्री मुख से सुना था। प्रभु श्री राम कथा के वर्णन में मतैक्य संभव नहीं है क्योंकि पृथक पृथक भाषाओं में मनीषियों के विचारों और प्रसंगों में किंचित भिन्नता है हालांकि कथा का मूल स्वरूप वही है।🙏🙏 हर मायने में यह कृति बेमिसाल, बेजोड़, बेनज़ीर है। भाषा के सागर से इस अपूर्व लेखन के लिए आपने अनमोल, तराशे हुए रत्नों का चुनाव किया है।👌👌👌👌👌💐💐 प्रसंग का विश्लेषण ऐसा कि दृश्य हमारे नेत्रों के समक्ष उपस्थित हो रहे थे,हमने पढ़ने का नहीं बल्कि देखने का सुख हासिल किया। लेखन कला के सौंदर्य में इतनी खो गई कि पढ़ते समय बाह्य कोलाहल और आंतरिक विषाद से पूर्ण तरह मुक्त रही। आपका प्रयास श्लाघनीय है। अपूर्व,अद्वितीय लेखन के लिए गगन सम बधाइयां🙏🙏🙏😊🌷🌷💐💐💞💞
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    Poonam Aggarwal
    24 अप्रैल 2021
    सन्ध्या जी मुझे बड़ी आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हो रही है ये अनुपम रचना पढ़कर क्योंकि इस प्रसंग से मैं पूर्णतया अनभिज्ञ थी । आपने हमारी संस्कृति और धरोहर का एक अति उज्जवल पक्ष इस रचना द्वारा प्रकाशमान करने का बड़ा ही पुनीत कार्य किया है । आप बधाई की हक़दार हैं तो मेरी तरफ़ से ढेरों शुभकामनाएं स्वीकारिये । 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 विषयानुरूप भाषा और शैली का आनन्द प्राप्त करके हृदय पावन और आत्मा प्रसन्न हो गई । आज चहुँ ओर जैसा निराशा और दुख का वातावरण व्याप्त है उसमें आपकी रचना ने रिमझिम फुहारों की सी ठण्डक प्रदान की है । आपका बहुत बहुत धन्यवाद और श्रीराम की कृपा समस्त प्राणियों को प्राप्त हो तथा आपकी लेखनी पर माँ सरस्वती का आशीष सदा बना रहे । 🙏🙏👏👏👏👏👌👌👌👌💞💞
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    25 अप्रैल 2021
    संध्या जी, क्या कहें, कुछ समझ नहीं पा रहे हैं हम। हाँ इतना अवश्य है कि आपने जो उद्गार यहां प्रस्तुत किए हैं, उनसे शत प्रतिशत सहमत ना होते हुए भी हम सत्तर प्रतिशत आपसे सहमत हैं। आपकी लेखनी अद्भुत है, मर्मज्ञ है। नमन आपको 🙏🌹🙏 राधे राधे 🙏💐🙏
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    navneeta chourasia
    27 अप्रैल 2021
    रचना में प्रस्तुत प्रसंग किंचित भिन्नता के साथ अपने पिता जी के श्री मुख से सुना था। प्रभु श्री राम कथा के वर्णन में मतैक्य संभव नहीं है क्योंकि पृथक पृथक भाषाओं में मनीषियों के विचारों और प्रसंगों में किंचित भिन्नता है हालांकि कथा का मूल स्वरूप वही है।🙏🙏 हर मायने में यह कृति बेमिसाल, बेजोड़, बेनज़ीर है। भाषा के सागर से इस अपूर्व लेखन के लिए आपने अनमोल, तराशे हुए रत्नों का चुनाव किया है।👌👌👌👌👌💐💐 प्रसंग का विश्लेषण ऐसा कि दृश्य हमारे नेत्रों के समक्ष उपस्थित हो रहे थे,हमने पढ़ने का नहीं बल्कि देखने का सुख हासिल किया। लेखन कला के सौंदर्य में इतनी खो गई कि पढ़ते समय बाह्य कोलाहल और आंतरिक विषाद से पूर्ण तरह मुक्त रही। आपका प्रयास श्लाघनीय है। अपूर्व,अद्वितीय लेखन के लिए गगन सम बधाइयां🙏🙏🙏😊🌷🌷💐💐💞💞
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    Poonam Aggarwal
    24 अप्रैल 2021
    सन्ध्या जी मुझे बड़ी आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हो रही है ये अनुपम रचना पढ़कर क्योंकि इस प्रसंग से मैं पूर्णतया अनभिज्ञ थी । आपने हमारी संस्कृति और धरोहर का एक अति उज्जवल पक्ष इस रचना द्वारा प्रकाशमान करने का बड़ा ही पुनीत कार्य किया है । आप बधाई की हक़दार हैं तो मेरी तरफ़ से ढेरों शुभकामनाएं स्वीकारिये । 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 विषयानुरूप भाषा और शैली का आनन्द प्राप्त करके हृदय पावन और आत्मा प्रसन्न हो गई । आज चहुँ ओर जैसा निराशा और दुख का वातावरण व्याप्त है उसमें आपकी रचना ने रिमझिम फुहारों की सी ठण्डक प्रदान की है । आपका बहुत बहुत धन्यवाद और श्रीराम की कृपा समस्त प्राणियों को प्राप्त हो तथा आपकी लेखनी पर माँ सरस्वती का आशीष सदा बना रहे । 🙏🙏👏👏👏👏👌👌👌👌💞💞
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    25 अप्रैल 2021
    संध्या जी, क्या कहें, कुछ समझ नहीं पा रहे हैं हम। हाँ इतना अवश्य है कि आपने जो उद्गार यहां प्रस्तुत किए हैं, उनसे शत प्रतिशत सहमत ना होते हुए भी हम सत्तर प्रतिशत आपसे सहमत हैं। आपकी लेखनी अद्भुत है, मर्मज्ञ है। नमन आपको 🙏🌹🙏 राधे राधे 🙏💐🙏