वे लिख रहे थे चिनारों पर प्रेम, बूढ़ी घाटियों में बो रहे थे स्नेह। उतरती साँझ का पल्लू थाम, वे जा छिपते थे शिकारों में। थिरकती डल झील के पानी से, ढक लेते थे अपने उघड़े बदन। झगड़ते थे सबसे मीठा सेब ...
वे लिख रहे थे चिनारों पर प्रेम, बूढ़ी घाटियों में बो रहे थे स्नेह। उतरती साँझ का पल्लू थाम, वे जा छिपते थे शिकारों में। थिरकती डल झील के पानी से, ढक लेते थे अपने उघड़े बदन। झगड़ते थे सबसे मीठा सेब ...