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लक्ष्य से दूर

4.6
427

हम अपने लक्ष्‍य से दूर हटते जा रहे हैं। देश की आजादी का सवाल हमारे सामने है। कुछ समय पहले अधिकांश कार्यकर्ताओं को रात-दिन उसी की धुन थी, परंतु इस समय वे शिथिल हैं। शिथिल ही हों, सो नहीं, क्‍योंकि अधिक परिश्रम के साथ कुछ समय तक काम कर लेने के पश्‍चात्, कुछ शिथिल पड़ जाना स्‍वाभाविक-सा है, किंतु वे भ्रम में भी पड़े हुए हैं, क्‍योंकि देश की स्‍वाधीनता के लक्ष्‍य की ओर, उनका ध्‍यान इस समय उतना नहीं है और उनमें से बहुतों की शक्तियाँ इधर-उधर और किसी-किसी दिशा में तो हानिकारक दिशाओं तक में लग रही हैं। ...

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लेखक के बारे में

जन्म : 26 अक्टूबर, 1890, अतरसुइया, इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) भाषा : हिंदी विधाएँ : पत्रकारिता, निबंध, कहान मुख्य कृतियाँ गणेशशंकर विद्यार्थी संचयन (संपादक - सुरेश सलिल) संपादन : कर्मयोगी, सरस्वती, अभ्युदय, प्रताप निधन 25 मार्च, 1931 कानपुर

समीक्षा
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    kt THAKUR "खुशी"
    07 नवम्बर 2019
    👌🏼👌🏼🙏🙏🙏
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    07 नवम्बर 2019
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