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लक्ष्मीनिवास बिडला

4.1
790071

किसी जमाने में एक चोर था। वह बडा ही चतुर था। लोगों का कहना था कि वह आदमी की आंखों का काजल तक उडा सकता था। एक दिन उस चोर ने सोचा कि जबतक वह राजधानी में नहीं जायगा और अपना करतब नहीं दिखायगी, तबतक चोरों के बीच उसकी धाक नहीं जमेगी। यह सोचकर वह राजधानी की ओर रवाना हुआ और वहां पहुंचकर उसने यह देखने के लिए नगर का चक्कर लगाया कि कहां कया कर सकता है। उसने तय कि कि राजा के महल से अपना काम शुरू करेगा। राजा ने रातदिन महल की रखवाली के लिए बहुतसे सिपाही तैनात कर रखे थे। बिना पकडे गये परिन्दा भी महल में नहीं ...

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अज्ञात
समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    kuldeep trivedi
    18 ಜುಲೈ 2020
    अच्छी कहानी के लिये हार्दिक धन्यवाद।वास्तव में ऐसे बहुत से लोग है जो बेहद होशियार है।लेकिन उनको अपनी होशियारी दिखाने का मौका नही मिलता।लेकिन राजा महाराजाओं के जमाने मे उनको मौका मिल जाता था।आज डिग्री/डिप्लोमा देखकर नौकरी।और प्रशासन की दयनीय स्थिति।हार्दिक धन्यवाद
  • author
    Ravi
    26 ಜೂನ್ 2020
    ये जानी चोर की कहानी है। जिसे कभी कोई पकड़ नही सका।वो बहुत नेकदिल इंसान था।
  • author
    Surendra Verma
    30 ಆಗಸ್ಟ್ 2015
    इस कहानी को बच्चो की कहानियों की श्रेणी में डाला जाना चाहिए।
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    kuldeep trivedi
    18 ಜುಲೈ 2020
    अच्छी कहानी के लिये हार्दिक धन्यवाद।वास्तव में ऐसे बहुत से लोग है जो बेहद होशियार है।लेकिन उनको अपनी होशियारी दिखाने का मौका नही मिलता।लेकिन राजा महाराजाओं के जमाने मे उनको मौका मिल जाता था।आज डिग्री/डिप्लोमा देखकर नौकरी।और प्रशासन की दयनीय स्थिति।हार्दिक धन्यवाद
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    Ravi
    26 ಜೂನ್ 2020
    ये जानी चोर की कहानी है। जिसे कभी कोई पकड़ नही सका।वो बहुत नेकदिल इंसान था।
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    Surendra Verma
    30 ಆಗಸ್ಟ್ 2015
    इस कहानी को बच्चो की कहानियों की श्रेणी में डाला जाना चाहिए।