pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

लघुकथा - बचा लो उसे

4.4
2119

पूरे दिन डेलीगेट्स के साथ डील करते-करते थक कर चूर हो गया था मैं। होटल के अपने कमरे में आया तो आते ही मैनेजर को फोन कर दिया, ’माल भेजो।’ ठीक बीस मिनट बाद एक बेहद सुन्दर सी लड़की मेरे कमरे में थी । उसने ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
author
डॉ0 पूरन सिंह
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Bhupendra Gurjar
    29 नवम्बर 2018
    अच्छी कहानी है लेकिन इसका बेस काफी पुराना है। बॉलीवुड की पुरानी फिल्मों में इसे काफी अच्छे तरीके से भुनाया गया है।और शायद यही कारण है कि कहानी में रुचि पैदा नहीं होती है।खालिस्तान का प्रयोग भी ज्यादा किया गया है जो सरलता से समझ में नहीं आता और पढ़ने में उबाऊ तो लगता ही है कहानी का भाव भी सही ढंग से प्रस्तुत नहीं होने देता है। यद्धपि कहानी में कसावट है पर थोड़ी बड़ी होने पर कहानी बेहतर हो सकती थी।जैसे जब वो लड़की वहा पहुंचती है तो पहले नाम वगैरह पूछती है इत्यादि।ये नहीं कि सीधे ही जाते ही कपड़े उतार दिए।कहानी में लड़की के लिए थोड़ा सेंस ऑफ ह्यूमर होता तो कहानी पाठको के दिल को छू जाती। अश्लीलता का भी थोड़ा अलग ढंग से वर्णन होता । नंगे जैसे शब्द की जगह निर्वस्त्र शब्द का प्रयोग थोड़ा बेहतर होता। कहानी पाठक को कुछ समझ में आने लगती है कि वो लड़की के चले जाने में खो जाता है और थोड़ी देर में कहानी ख़त्म। अस्पताल में आप कब पहुंच जाते है इसका भी पता वहीं जाकर चलता है।
  • author
    अपर्णा थपलियाल
    20 नवम्बर 2018
    bahut achchee laghukatha
  • author
    Neelam Mishra
    27 दिसम्बर 2018
    bahut badhiya
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Bhupendra Gurjar
    29 नवम्बर 2018
    अच्छी कहानी है लेकिन इसका बेस काफी पुराना है। बॉलीवुड की पुरानी फिल्मों में इसे काफी अच्छे तरीके से भुनाया गया है।और शायद यही कारण है कि कहानी में रुचि पैदा नहीं होती है।खालिस्तान का प्रयोग भी ज्यादा किया गया है जो सरलता से समझ में नहीं आता और पढ़ने में उबाऊ तो लगता ही है कहानी का भाव भी सही ढंग से प्रस्तुत नहीं होने देता है। यद्धपि कहानी में कसावट है पर थोड़ी बड़ी होने पर कहानी बेहतर हो सकती थी।जैसे जब वो लड़की वहा पहुंचती है तो पहले नाम वगैरह पूछती है इत्यादि।ये नहीं कि सीधे ही जाते ही कपड़े उतार दिए।कहानी में लड़की के लिए थोड़ा सेंस ऑफ ह्यूमर होता तो कहानी पाठको के दिल को छू जाती। अश्लीलता का भी थोड़ा अलग ढंग से वर्णन होता । नंगे जैसे शब्द की जगह निर्वस्त्र शब्द का प्रयोग थोड़ा बेहतर होता। कहानी पाठक को कुछ समझ में आने लगती है कि वो लड़की के चले जाने में खो जाता है और थोड़ी देर में कहानी ख़त्म। अस्पताल में आप कब पहुंच जाते है इसका भी पता वहीं जाकर चलता है।
  • author
    अपर्णा थपलियाल
    20 नवम्बर 2018
    bahut achchee laghukatha
  • author
    Neelam Mishra
    27 दिसम्बर 2018
    bahut badhiya