ऐसे समय में जब पूंजीवादी व्यवस्थाओं के दमन से आर्थिक व सामाजिक ढांचा चरमरा रहा है जो सामाजिक राष्ट्रीय विघटन को तो जन्म दे ही रहा है साथ ही स्वार्थ और संकीर्णता जैसी विकृतियां पैदा कर मानव मूल्यों का ...
आलेख में थोड़ा और विस्तार तथा उद्धरणों की आवश्यकता थी। फिर भी सार्थक लेख। सिर्फ भगत सिंह ही नही तमाम क्रांतिकारियों के विचार और प्रयत्नों को छुपा दिया गया है।
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