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कुछ लोग मिलते नहीं कभी

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ठहरा सा पानी था मैं ना रवानी ना जिंदगानी इच्छाओं की काई सी कुछ हरी कुछ काली मृत प्राय सा था मैं तुम रोशनी चीरती पानी की सतह को मुझ तक पहुंचती टटोलना चाहती हो मापना चाहती हो मन मेरा पर नामुमकिन ...

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लेखक के बारे में

जिज्ञासु , पर लड़की थोड़ी फिल्मी है ☺️☺️

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    मनीष गौतम
    17 फ़रवरी 2020
    तलहटी को सुनहरे स्पर्श इंतजार वाह गज़ब कल्पना शील पंक्तियां हैं, उपमाएँ👌👌
  • author
    Madhusudan Shrivastava "मधु"
    17 फ़रवरी 2020
    वाह।। बहुत ही संजीदा सृजन।। क्या अभिव्यक्ति है। अद्भुत
  • author
    17 फ़रवरी 2020
    अहा ! कितनी सुंदर अभिव्यक्ति
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    मनीष गौतम
    17 फ़रवरी 2020
    तलहटी को सुनहरे स्पर्श इंतजार वाह गज़ब कल्पना शील पंक्तियां हैं, उपमाएँ👌👌
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    Madhusudan Shrivastava "मधु"
    17 फ़रवरी 2020
    वाह।। बहुत ही संजीदा सृजन।। क्या अभिव्यक्ति है। अद्भुत
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    17 फ़रवरी 2020
    अहा ! कितनी सुंदर अभिव्यक्ति