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कुछ बहुए माँ भी होती है

4.7
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शाम को मै पड़ोस में जाकर गीता के पास बैठ गई। उसकी सासू माँ भी तो कई दिनों से बीमार है,बिस्तर पर ही रहती है पति बहुत पहले ही गुजर गये थे,सभी बच्चों को बडा संघर्ष करके उन्होंने पाला था।….. सोचा ख़बर भी ...

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लेखक के बारे में
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मनीषा गौतम
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Chander Shekhar
    09 मई 2018
    एक छोटी सी कहानी में आपने सम्पूर्ण गृहस्थ जीवन का सार समेट दिया। इस मर्मस्पर्शी कहानी के लिए आप को बारम्बार साधुवाद
  • author
    Govinda Samriya Samriya
    12 मई 2018
    बहुत ही बढ़िया मनीषा गौतम जी आपकी कहानी पढ़ कर मन को सकून मिला प्रेणना दायक धन्यवाद
  • author
    Renu
    05 जनवरी 2019
    वाह!!!!!! प्रिय मनीषा जीबहुत ही प्रेरक कथा ही | काश हर बहू गीता जैसी आत्मज्ञानी हो तो नारी के प्रति नारी का ये भेदभाव समूल नष्ट हो जाए | हर बहू ये सोचती है कि वह अपने बच्चो को सास से अधिक अच्छी तरह से पाल रही है | कमाऊ और एबरहित पति की परवरिश में सासु माँ के सुघढ़ हाथ और संस्कार हैं , इस बात को सिरे से नकार दती है | पर यदि बहू सास की बढ़ती उम्र की अक्षमता को सकारात्मक भाव से देखे और महसूस करे कि उसे भी आने वाले समय में इसी तरह की शारीरिक अक्षमताओं से गुजरना पड़ेगा तो उसमें सासु माँ के प्रति मातृत्व भाव जगते देर नहीं लगेगी | सचमुच बुजुर्ग एक समय के बाद बच्चे सरीखे ही हो जाते हैं | बच्चो के जीवन में अपार सम्भावनाएं होती हैं तो बुजुर्ग इन संभावनाओं से कहीं दूर चले जाते है | सुंदर प्रेरक कहानी के लिए सस्नेह आभार और हार्दिक शुभकामनायें |
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    Chander Shekhar
    09 मई 2018
    एक छोटी सी कहानी में आपने सम्पूर्ण गृहस्थ जीवन का सार समेट दिया। इस मर्मस्पर्शी कहानी के लिए आप को बारम्बार साधुवाद
  • author
    Govinda Samriya Samriya
    12 मई 2018
    बहुत ही बढ़िया मनीषा गौतम जी आपकी कहानी पढ़ कर मन को सकून मिला प्रेणना दायक धन्यवाद
  • author
    Renu
    05 जनवरी 2019
    वाह!!!!!! प्रिय मनीषा जीबहुत ही प्रेरक कथा ही | काश हर बहू गीता जैसी आत्मज्ञानी हो तो नारी के प्रति नारी का ये भेदभाव समूल नष्ट हो जाए | हर बहू ये सोचती है कि वह अपने बच्चो को सास से अधिक अच्छी तरह से पाल रही है | कमाऊ और एबरहित पति की परवरिश में सासु माँ के सुघढ़ हाथ और संस्कार हैं , इस बात को सिरे से नकार दती है | पर यदि बहू सास की बढ़ती उम्र की अक्षमता को सकारात्मक भाव से देखे और महसूस करे कि उसे भी आने वाले समय में इसी तरह की शारीरिक अक्षमताओं से गुजरना पड़ेगा तो उसमें सासु माँ के प्रति मातृत्व भाव जगते देर नहीं लगेगी | सचमुच बुजुर्ग एक समय के बाद बच्चे सरीखे ही हो जाते हैं | बच्चो के जीवन में अपार सम्भावनाएं होती हैं तो बुजुर्ग इन संभावनाओं से कहीं दूर चले जाते है | सुंदर प्रेरक कहानी के लिए सस्नेह आभार और हार्दिक शुभकामनायें |