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कुछ तो तंहाई की रातों में

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कुछ तो तंहाई की रातों में सहारा होता तुम न होते न सही ज़िक्र तुम्हारा होता तर्क-ए-दुनिया का ये दावा है फ़ुज़ूल ऐ ज़ाहिद बार-ए-हस्ती तो ज़रा सर से उतारा होता वो अगर आ न सके मौत ही आई होती हिज्र में ...

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समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    नक्षत्रा सिंह
    01 अगस्त 2020
    बहुत सारे शब्दों का अर्थ तो समझ नही आया पर फिर भी पढ़ने में बहुत सुंदर लगा।
  • author
    PANKAJ KUMAR SRIVASTAVA
    01 फ़रवरी 2020
    वाह वाह।मेरी रचनाये भी पढे
  • author
    Manjit Singh
    03 सितम्बर 2020
    कविता पसंद अाई
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  • author
    नक्षत्रा सिंह
    01 अगस्त 2020
    बहुत सारे शब्दों का अर्थ तो समझ नही आया पर फिर भी पढ़ने में बहुत सुंदर लगा।
  • author
    PANKAJ KUMAR SRIVASTAVA
    01 फ़रवरी 2020
    वाह वाह।मेरी रचनाये भी पढे
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    Manjit Singh
    03 सितम्बर 2020
    कविता पसंद अाई