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किताब हूँ जैसे मै

4.1
690

किताब हूँ जैसे मै कोई खोलकर वो मुझे पढता ही गया, हम थे ठहरे जहाँ आज भी खड़े हैं वहीँ पर नूरेनजर, वो तो जैसे वक़्त की रफ़्तार की तरह बढ़ता ही गया, कुछ तो सिद्दत थी उसकी मोहब्बत के अंदाज में जनाब, दिल को ...

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समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Kapil Vats "Kv"
    17 दिसम्बर 2017
    💛
  • author
    Naveen Pawar
    22 जनवरी 2022
    आदरणीया महोदया जी आपकी कवितावली बहुत खुबसुरत होती है उपयुक्तता लफ्ज दिल की गहराई मे अमिट छाप छोड जाते है
  • author
    Vikram Udhwani
    29 मई 2020
    nice bahut hi sundar aur saral bhasha ka prayog kiya gaya hai
  • author
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    Kapil Vats "Kv"
    17 दिसम्बर 2017
    💛
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    Naveen Pawar
    22 जनवरी 2022
    आदरणीया महोदया जी आपकी कवितावली बहुत खुबसुरत होती है उपयुक्तता लफ्ज दिल की गहराई मे अमिट छाप छोड जाते है
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    Vikram Udhwani
    29 मई 2020
    nice bahut hi sundar aur saral bhasha ka prayog kiya gaya hai