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खुशियों के दरवाज़े के ठीक सामने

4.7
23992

“कौन है रे ? इतनी गर्मी में भी सालों को चैन नहीं है.” शर्म को खूंटी पे टांग कर राधा, अस्त व्यस्त कपड़ों में अपनी चारपाई पर लेटी हुई गर्मी से जूझ रही थी कि तभी उसकी खोली की कुण्डी खड़की. एक तो पहले ...

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लेखक के बारे में
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धीरज झा

नाम धीरज झा, काम - स्वछंद लेखन (खास कर कहानियां लिखना), खुद की वो बुरी आदत जो सबसे अच्छी लगती है मुझे वो है चोरी करना, लोगों के अहसास को चुरा कर कहानी का रूप दे देना अच्छा लगता है मुझे....किसी का दुःख, किसी की ख़ुशी, अगर मेरी वजह से लोगों तक पहुँच जाये तो बुरा ही क्या है इसमें :) .....इसी आदत ने मुझसे एक कहानी संग्रह लिखवा दिया जिसका नाम है सीट नं 48.... जी ये वही सीट नं 48 कहानी है जिसने मुझे प्रतिलिपि पर पहचान दी... इसके तीन भाग प्रतिलिपि पर हैं और चौथा और अंतिम भाग मेरे द्वारा इसी शीर्षक के साथ लिखी गयी किताब में....आप सब की वजह से हूँ इसीलिए कोशिश करूँगा कि आप सबका साथ हमेशा बना रहे... फेसबुक पर जुड़ें :- https://www.facebook.com/profile.php?id=100030711603945

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    शीतांशु शेखर
    14 मई 2018
    सच्चे प्रेम का पुष्प कहीं भी खिल सकता है।सभ्य समाज जिन्हें असामाजिक कहकर मुंह मोड लेता है वे भी इंसान हैं। सहज मानवीय संवेदनाओं को नये कोण से तलाशने का सफल प्रयास। साधुवाद!
  • author
    Haritima Shukla
    11 नवम्बर 2017
    सदैव की तरह एक और बेहतरीन रचना।आपके लेखन की बड़ी पृशंशक हूँ मैं।
  • author
    Pooja Budhad
    08 नवम्बर 2017
    behtrin umdaa sache pyar Ko kitne ache tarike se pesh Kiya he.......
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    शीतांशु शेखर
    14 मई 2018
    सच्चे प्रेम का पुष्प कहीं भी खिल सकता है।सभ्य समाज जिन्हें असामाजिक कहकर मुंह मोड लेता है वे भी इंसान हैं। सहज मानवीय संवेदनाओं को नये कोण से तलाशने का सफल प्रयास। साधुवाद!
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    Haritima Shukla
    11 नवम्बर 2017
    सदैव की तरह एक और बेहतरीन रचना।आपके लेखन की बड़ी पृशंशक हूँ मैं।
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    Pooja Budhad
    08 नवम्बर 2017
    behtrin umdaa sache pyar Ko kitne ache tarike se pesh Kiya he.......