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खुशी

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मैं सुबह अस्पताल पहुंच गई थी। प्रो. अंकित (मेरे जीजाजी) की दृष्टि ऑपरेशन कक्ष के द्वार पर लगभग केंद्रित सी रही। द्वार खुलते ही वह चेहरे के भावों को संतुलन देकर द्वार की ओर लपके। ‘बधाई हो, आप ...

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एक सजग पाठक

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    20 सितम्बर 2019
    सच्चाई है ये अपने समाज की ..इकक्सिवी सदी में भी ऐसा हौता है👌👍👍
  • author
    Kalpana Mudgal
    24 मई 2022
    ml
  • author
    chitra sharma
    19 मई 2018
    Wahh समाज की कड़वी सच्चाई......
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    20 सितम्बर 2019
    सच्चाई है ये अपने समाज की ..इकक्सिवी सदी में भी ऐसा हौता है👌👍👍
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    Kalpana Mudgal
    24 मई 2022
    ml
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    chitra sharma
    19 मई 2018
    Wahh समाज की कड़वी सच्चाई......