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खुल्ले पैसे

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खुल्ले पैसे रेजगारी की किल्लत हो गई थी। जिस भी दुकानदार से बात करो, रेजगारी होने के बावजूद भी कहता, "खुल्ले पैसे दो।" कंडक्टर भी यही अकड़ दिखाता। नोट होता दस का तो कंडक्टर धमकी देता, "खुल्ले पैसे दो, ...

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लेखक के बारे में
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सुशील कुमार

हिन्दी भाषा में प्रकाशित धर्म ग्रन्थ, उपन्यास, जासूसी नॉवल सब पढ़े। हिन्दी के समाचार पत्रों में कार्य कर पढ़ने की लत को पूरा किया।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Kalpana Pathak
    04 फ़रवरी 2021
    बहुत ही सुंदर रचना। एक बार दुकानदार ने मुझे चैन्जके रुप मे टिकट के बजाय रावलगांवकी स्वीट दे दी। मैने पूछा अगली बार मैं आपको खुले पैसे के बदले यह स्वीट आपको दे दूँ तो चलेगा? वह आश्चर्य से कहने लगे, "हम कैसे ले सकते हैं?"
  • author
    KHUSHBU ARYA
    05 फ़रवरी 2021
    बहुत सुंदर प्रस्तुति है सर आपकी 🙏
  • author
    04 फ़रवरी 2021
    Nice मेरी आज की रचना अवश्य पढ़े
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    Kalpana Pathak
    04 फ़रवरी 2021
    बहुत ही सुंदर रचना। एक बार दुकानदार ने मुझे चैन्जके रुप मे टिकट के बजाय रावलगांवकी स्वीट दे दी। मैने पूछा अगली बार मैं आपको खुले पैसे के बदले यह स्वीट आपको दे दूँ तो चलेगा? वह आश्चर्य से कहने लगे, "हम कैसे ले सकते हैं?"
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    KHUSHBU ARYA
    05 फ़रवरी 2021
    बहुत सुंदर प्रस्तुति है सर आपकी 🙏
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    04 फ़रवरी 2021
    Nice मेरी आज की रचना अवश्य पढ़े