खुद से खुद के ताल्लुक़ात महँगे पड़ते हैं यहाँ जीने के ख्यालात महँगे पड़ते हैं रात है फ़क़त चंद पलों की महमाँ खाबो पे लगाये बिसात महँगे पड़ते है आँखे न मूंद नाखुदा को यू देख हाथों से दूर हालात महँगे ...
अद्वितीय; ग़ज़ले एवं समसामायिक महत्व के लेख पढने के लिए मेरी profile visit करे एवं यथासंभव मूल्याकंन प्रतिक्रिया दें मुझे आपके बहुमूल्य सुझावों का इंतजार रहेगा।
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