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खुद से खुद के ताल्लुक़ात महँगे पड़ते हैं

4.1
3207

खुद से खुद के ताल्लुक़ात महँगे पड़ते हैं यहाँ जीने के ख्यालात महँगे पड़ते हैं रात है फ़क़त चंद पलों की महमाँ खाबो पे लगाये बिसात महँगे पड़ते है आँखे न मूंद नाखुदा को यू देख हाथों से दूर हालात महँगे ...

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लेखक के बारे में
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विशाल शर्मा
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    mohit kumar
    06 ଫେବୃୟାରୀ 2019
    अद्वितीय; ग़ज़ले एवं समसामायिक महत्व के लेख पढने के लिए मेरी profile visit करे एवं यथासंभव मूल्याकंन प्रतिक्रिया दें मुझे आपके बहुमूल्य सुझावों का इंतजार रहेगा।
  • author
    नीरज M "M"
    11 ଫେବୃୟାରୀ 2018
    सुना है खुशी के लम्हात महंगे पड़ते हैं क्या कहूँ ख़ामोश कर डाला
  • author
    PANKAJ KUMAR SRIVASTAVA
    30 ମାର୍ଚ୍ଚ 2020
    बेहतरीन।मेरी रचनायें भी पढे व अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करे ।
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    mohit kumar
    06 ଫେବୃୟାରୀ 2019
    अद्वितीय; ग़ज़ले एवं समसामायिक महत्व के लेख पढने के लिए मेरी profile visit करे एवं यथासंभव मूल्याकंन प्रतिक्रिया दें मुझे आपके बहुमूल्य सुझावों का इंतजार रहेगा।
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    नीरज M "M"
    11 ଫେବୃୟାରୀ 2018
    सुना है खुशी के लम्हात महंगे पड़ते हैं क्या कहूँ ख़ामोश कर डाला
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    PANKAJ KUMAR SRIVASTAVA
    30 ମାର୍ଚ୍ଚ 2020
    बेहतरीन।मेरी रचनायें भी पढे व अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करे ।