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ख़ुद को भी कहाँ पहचानती हूँ

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तेरा नाम जो देखती हूँ  ख़ो सी जाती हूँ फ़िर मैं ख़ुद को भी कहाँ पहचानती हूँ हर नज़र में तुझे ही ढूंढ़ती हूँ ऐसी अपने दिल की हालत करती हूँ एक तेरे जाने से दिल की गली वीरान सी हो गई है अब तो इसमें एक बसेरा ...

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लेखक के बारे में
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Meena (Sumi) Rawlani

क्यों तुम पहचान कर भी अनजान बने रहते हो दोस्ती का मुखौटा पहनकर दुश्मनों सा व्यवहार करने लगते हो ll शायद यही होती है दोस्ती ऐसी कहलाती है दोस्ती पहले दोस्त बनाते हो फिर दुश्मन बनकर पीठ में खंजर घोपने लगते हो l Sumi

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Sandip Sharmaz . Sharmaz "Lucky"
    28 अगस्त 2022
    बडी प्यारी रचना। सुमी जी तूसी ग्रेट हो। जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जी।
  • author
    Vinay Sinha
    28 अगस्त 2022
    बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति दी है आपने। बधाई स्वीकार करिए
  • author
    28 अगस्त 2022
    हर शय में सिर्फ तुम्हारा दीदार... बेहतरीन लिखा है आपने.
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    Sandip Sharmaz . Sharmaz "Lucky"
    28 अगस्त 2022
    बडी प्यारी रचना। सुमी जी तूसी ग्रेट हो। जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जी।
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    Vinay Sinha
    28 अगस्त 2022
    बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति दी है आपने। बधाई स्वीकार करिए
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    28 अगस्त 2022
    हर शय में सिर्फ तुम्हारा दीदार... बेहतरीन लिखा है आपने.