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खोल दो

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अमृतसर से स्पेशल ट्रेन दोपहर दो बजे चली और आठ घंटों के बाद मुगलपुरा पहुंची। रास्ते में कई आदमी मारे गए। अनेक जख्मी हुए और कुछ इधर-उधर भटक गए। सुबह दस बजे कैंप की ठंडी जमीन पर जब सिराजुद्दीन ने आंखें ...

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लेखक के बारे में
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सआदत हसन मंटो

सआदत हसन मंटो ,( जन्म:11 मई, 1912, समराला, पंजाब; मृत्यु: 18 जनवरी, 1955, लाहौर) कहानीकार और लेखक थे। मंटो फ़िल्म और रेडियो पटकथा लेखक और पत्रकार भी थे।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Vijaya Pareek
    01 এপ্রিল 2019
    सच इंसान ही हैं जो भेड़िया बन सकता हैं, बहुत सोचने पे मजबूर करती हैं ये कहानी ,समय कितना भी बदल जाये ,सोच न बदली तो कैसे सलामत रहेगी सकीना, उसके लिए फिर हर मर्द वो ही होगा ,जो उसके जिस्म की भूख शांत करना चाहेगा ,वो भूल जाएगी बाप भाई जैसे पवित्र रिश्तों को ,बस उसे दिखेगा एक मर्द भेडिया ,सोच बदलनी ही चाहिए ।।
  • author
    Amrit Sahoo
    09 জুলাই 2018
    जो नंगे मशवरे को नंगी आंखों से देखे और उसे पूरे नंगेपन से पेश करे वो मंटो है। वाकई समाज को आइना दिखती है मंटो की कहानियां। मंटो जिन्दाबाद
  • author
    मनमोहन कौशिक
    04 অগাস্ট 2017
    बंटवारे की दर्द भरी दास्तां पढ़कर दिल भर आया।रजाकार ही दरिंदे हैं रहबर ही रहजन हैं।
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    Vijaya Pareek
    01 এপ্রিল 2019
    सच इंसान ही हैं जो भेड़िया बन सकता हैं, बहुत सोचने पे मजबूर करती हैं ये कहानी ,समय कितना भी बदल जाये ,सोच न बदली तो कैसे सलामत रहेगी सकीना, उसके लिए फिर हर मर्द वो ही होगा ,जो उसके जिस्म की भूख शांत करना चाहेगा ,वो भूल जाएगी बाप भाई जैसे पवित्र रिश्तों को ,बस उसे दिखेगा एक मर्द भेडिया ,सोच बदलनी ही चाहिए ।।
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    Amrit Sahoo
    09 জুলাই 2018
    जो नंगे मशवरे को नंगी आंखों से देखे और उसे पूरे नंगेपन से पेश करे वो मंटो है। वाकई समाज को आइना दिखती है मंटो की कहानियां। मंटो जिन्दाबाद
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    मनमोहन कौशिक
    04 অগাস্ট 2017
    बंटवारे की दर्द भरी दास्तां पढ़कर दिल भर आया।रजाकार ही दरिंदे हैं रहबर ही रहजन हैं।