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ख़ाना - ए - ज़ंजीर का पाबंद रहता हूँ सदा

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ख़ाना-ए-ज़ंजीर का पाबंद रहता हूँ सदा घर अबस हो पूछते मुझ ख़ानमाँ-बर्बाद का इश्क़-ए-क़द-ए-यार में क्या ना-तवानी का है ज़ोर ग़श मुझे आया जो साया पड़ गया शमशाद का ख़ुद-फ़रामोशी तुम्हारी ग़ैर के काम आ ...

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लेखक के बारे में
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आघा हसन
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    mohit kumar
    06 फ़रवरी 2019
    अद्वितीय; ग़ज़ले एवं समसामायिक महत्व के लेख पढने के लिए मेरी profile visit करे एवं यथासंभव मूल्याकंन प्रतिक्रिया दें मुझे आपके बहुमूल्य सुझावों का इंतजार रहेगा।
  • author
    24 दिसम्बर 2021
    शुक्रिया जनाब गजले लिखने के आज के दौर मे ऐसा लगता है हम दूर जा रहे है..
  • author
    Chanda Rajput.. "चान्द"
    07 मार्च 2021
    बहुत खुब
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    mohit kumar
    06 फ़रवरी 2019
    अद्वितीय; ग़ज़ले एवं समसामायिक महत्व के लेख पढने के लिए मेरी profile visit करे एवं यथासंभव मूल्याकंन प्रतिक्रिया दें मुझे आपके बहुमूल्य सुझावों का इंतजार रहेगा।
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    24 दिसम्बर 2021
    शुक्रिया जनाब गजले लिखने के आज के दौर मे ऐसा लगता है हम दूर जा रहे है..
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    Chanda Rajput.. "चान्द"
    07 मार्च 2021
    बहुत खुब