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कविता

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*जीवन की सांझ* एकदिन आखिर सामने खड़ी हो जाती है जीवन की सांझ । हम कितना भी मूँह मोड़े वह प्रत्यक्ष प्रमाण बन जाती है, अपने खुद के कर्मो का। हम कितना भी फिर पीछा छुड़ाना चाहें छुड़ा नही पाते। ...

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लेखक के बारे में
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Bandana Singh

एक चाहत संतुष्टि प्राप्त करने की , जो साहित्य के सान्निध्य से सम्भव है । ■वन्दना सिंह -जन्म वाराणसी, ■शिक्षा -एम ॰ ए (समाज शास्त्र ) प्रकाशित रचनाए --सारी कविताएं केवल प्रतिलिपि पर स्व -प्रकाशित ।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    संतोष नायक
    25 मई 2025
    बहुत ही अच्छी व हृदयस्पर्शी रचना लिखी है आपने ' कविता..जीवन की सांझ '।
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    संतोष नायक
    25 मई 2025
    बहुत ही अच्छी व हृदयस्पर्शी रचना लिखी है आपने ' कविता..जीवन की सांझ '।