*जीवन की सांझ* एकदिन आखिर सामने खड़ी हो जाती है जीवन की सांझ । हम कितना भी मूँह मोड़े वह प्रत्यक्ष प्रमाण बन जाती है, अपने खुद के कर्मो का। हम कितना भी फिर पीछा छुड़ाना चाहें छुड़ा नही पाते। ...
एक चाहत संतुष्टि प्राप्त करने की , जो साहित्य के सान्निध्य से सम्भव है ।
■वन्दना सिंह -जन्म वाराणसी,
■शिक्षा -एम ॰ ए (समाज शास्त्र )
प्रकाशित रचनाए --सारी कविताएं केवल प्रतिलिपि पर स्व -प्रकाशित ।
सारांश
एक चाहत संतुष्टि प्राप्त करने की , जो साहित्य के सान्निध्य से सम्भव है ।
■वन्दना सिंह -जन्म वाराणसी,
■शिक्षा -एम ॰ ए (समाज शास्त्र )
प्रकाशित रचनाए --सारी कविताएं केवल प्रतिलिपि पर स्व -प्रकाशित ।
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