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कवि का भूत

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कवि का भूत धुन चढ़ी सिर पर बनने की कवि, चाहत थी चमकने की जैसे रवि। किन्तु कवि बनें कैसे वह भाव,वह तुकबंदी वह छन्दों का मेल न था, कवि बनना कोई सर्कस का खेल न था। लय,रस,अलंकार,छन्द सजाने पड़ते ...

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लेखक के बारे में

दर्द आँसू और अहसास जीवन के हैं सब खास, क्या लिखूँ मैं आज। गरीबों का आस लिखूँ अमीरों का विलास लिखूँ पाखण्डीयों का जाल लिखूँ लिखूँ भ्रष्ट नेताओं का दास्तान क्या लिखूँ मैं आज। नारी की पीड़ा लिखूँ पियत पुरूष मदिरा लिखूँ बाल मजदूरों की जखीरा लिखूँ लिखूँ घुमत शिक्षित युवा बेरोजगार क्या लिखूँ मैं आज। त्रिवेणी कुशवाहा "त्रिवेणी" डिप्लोमा इन सिविल इंजीनियरिंग, इन 2003 - सेन्ट्रल इण्डिया इन्स्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एण्ड स्टडीज, मास्टर ट्रेनर कोर्स,इन 2004 - होम्सग्लेन, आस्ट्रेलिया, स्किल ट्रेनर एवम् मोटीवेटर बहुराष्ट्रीय निर्माण कम्पनी में भारत एवम् जी सी सी कन्ट्रीज, सामाचार पत्रों में प्रकाशित कविताएँ ।

समीक्षा
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  • author
    Krishna Shukla
    14 जून 2020
    बिलकुल सटीक व्यंगात्मक कविता के स्वरूप और महत्ता को प्रस्तुत करती रचना. कुछ पाने की लालसा मेँ कविता का चीर हरण से लेकर अपहरण तक हो रहा है. तव ही कविता से सजीवता कम हो रही है. आत्मा बिना कविता शब्दो का ढेर मात्र रह जाता है...... आपकी रचना यही विचार करने का संदेश देती है...... बहुत बहुत बहुत बधाई. इस बहुउद्देशीय प्रेरणात्मक रचना के लिए
  • author
    13 जून 2020
    वाह सर जी बहुत खूब व्याख्या किये आप 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
  • author
    Aditi Tandon
    14 जून 2020
    वाह जी अच्छा और सच लिखा है आपने
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    Krishna Shukla
    14 जून 2020
    बिलकुल सटीक व्यंगात्मक कविता के स्वरूप और महत्ता को प्रस्तुत करती रचना. कुछ पाने की लालसा मेँ कविता का चीर हरण से लेकर अपहरण तक हो रहा है. तव ही कविता से सजीवता कम हो रही है. आत्मा बिना कविता शब्दो का ढेर मात्र रह जाता है...... आपकी रचना यही विचार करने का संदेश देती है...... बहुत बहुत बहुत बधाई. इस बहुउद्देशीय प्रेरणात्मक रचना के लिए
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    13 जून 2020
    वाह सर जी बहुत खूब व्याख्या किये आप 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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    Aditi Tandon
    14 जून 2020
    वाह जी अच्छा और सच लिखा है आपने