दिल के दो टुकड़े होते ही नहीं फूटने लगती शब्दों की अविरल धारा और न ही प्रेम के दो छंद लिखते ही बन सका कवि कोई जियो एक कायरों-सी ज़िन्दगी चुपचाप मत करो प्रतिशोध किसी बात का घुटते रहो भीतर तक घसीटो हर पीड़ा जीवन के सुन्दर स्वप्न को तार-तार कर भिगोते रहो निरर्थक अहसासों की कलम से, पुरानी डायरी के चुनिंदा वाहियात पन्ने फिर छुपा लो उन्हें दुनिया की नज़र से हाय! चोट न पहुंचे किसी के ह्रदय को थक जाओगे जिस दिन सबको सँभालते हुए उतार फेंकोगे 'महात्मा' का चोला खिसिया जाओगे अपनी ही निरर्थक परिभाषाओं से ...
रिपोर्ट की समस्या
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