pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

कवि

4.2
781

दिल के दो टुकड़े होते ही नहीं फूटने लगती शब्दों की अविरल धारा और न ही प्रेम के दो छंद लिखते ही बन सका कवि कोई जियो एक कायरों-सी ज़िन्दगी चुपचाप मत करो प्रतिशोध किसी बात का घुटते रहो भीतर तक घसीटो हर पीड़ा जीवन के सुन्दर स्वप्न को तार-तार कर भिगोते रहो निरर्थक अहसासों की कलम से, पुरानी डायरी के चुनिंदा वाहियात पन्ने फिर छुपा लो उन्हें दुनिया की नज़र से हाय! चोट न पहुंचे किसी के ह्रदय को थक जाओगे जिस दिन सबको सँभालते हुए उतार फेंकोगे 'महात्मा' का चोला खिसिया जाओगे अपनी ही निरर्थक परिभाषाओं से ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में

प्रीति 'अज्ञात' संप्रति - संस्थापक एवं संपादक ('हस्ताक्षर' मासिक वेब पत्रिका), ब्लॉगर, सामाजिक कार्यकर्त्ता,स्वतंत्र रचनाकार इंडिया टुडे की वेबसाइट iChowk पर 2016 से contributor, साहित्य, कला, संस्कृति को समर्पित संस्था 'कर्मभूमि' अहमदाबाद की co-founder   पुस्तकें- मध्यांतर, दोपहर की धूप में, 17 साझा संग्रह  5 पुस्तकों का संपादन तथा एक दर्ज़न से भी अधिक पुस्तकों की भूमिका एवं समीक्षा लेखन पत्रकारिता,ब्लॉगिंग एवं लेखन के क्षेत्र में विभिन्न प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित   विस्तृत परिचय-https://hastaksher.com/rachnakar.php?rid=9

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    ज्योति खरे
    16 अक्टूबर 2015
    कविता के भीतर कविता का सच तो यही है कि कब तक अंदर की छटपटाहट को अपने भीतर रख सकेगा एक संवेदनशील मनुष्य-  सार्थक सृजन तो यही कहता है इसी सोच को आगे बढ़ाती प्रीति जी की रचना ह्रदय के दोनों भागों आर्टियल और वीनस सिस्टम यानी शिरा तंत्र और धमनी तंत्र में बिना हिचक बहना चाहती है- नए कैनवास में गढ़ी यह रचना सबसे मांग करती है कि लिखो पढो और अपने भीतर के सच को निःसंकोच व्यक्त करो-- सार्थक सोच की कमाल की रचना  बहुत सुंदर  बधाई 
  • author
    प्रदीप कुशवाहा
    16 अक्टूबर 2015
    सच है जब ऐसा कुछ होता है तभी उबलते लावे से पैदा होता है कवि लिख डालता हे सब कुछ , सादर बधाई , बहुत बढ़िया भाव सहित रचना . 
  • author
    ऋता शेखर मधु
    16 अक्टूबर 2015
    बहुत सुन्दर...भाव जब  बाँध तोड़ बाहर आएगा तभी रचेगी कविता....बधाई एवम् शुभकामनाएं प्रीति !
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    ज्योति खरे
    16 अक्टूबर 2015
    कविता के भीतर कविता का सच तो यही है कि कब तक अंदर की छटपटाहट को अपने भीतर रख सकेगा एक संवेदनशील मनुष्य-  सार्थक सृजन तो यही कहता है इसी सोच को आगे बढ़ाती प्रीति जी की रचना ह्रदय के दोनों भागों आर्टियल और वीनस सिस्टम यानी शिरा तंत्र और धमनी तंत्र में बिना हिचक बहना चाहती है- नए कैनवास में गढ़ी यह रचना सबसे मांग करती है कि लिखो पढो और अपने भीतर के सच को निःसंकोच व्यक्त करो-- सार्थक सोच की कमाल की रचना  बहुत सुंदर  बधाई 
  • author
    प्रदीप कुशवाहा
    16 अक्टूबर 2015
    सच है जब ऐसा कुछ होता है तभी उबलते लावे से पैदा होता है कवि लिख डालता हे सब कुछ , सादर बधाई , बहुत बढ़िया भाव सहित रचना . 
  • author
    ऋता शेखर मधु
    16 अक्टूबर 2015
    बहुत सुन्दर...भाव जब  बाँध तोड़ बाहर आएगा तभी रचेगी कविता....बधाई एवम् शुभकामनाएं प्रीति !