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कठपुतली

4.3
533

सुनो!!! मैं जानती थी तुम्हे और तुम्हारे प्यार को मुझे लगता था तुमने प्यार की डोर से मुझे बांध रखा है मैं उस बंधन से मजबूती से बंधी हूं जरा दूरियां बढ़ी नहीं और डोर में आया तनाव या खिंचाव मुझे और मेरे ...

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लेखक के बारे में
समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    17 अक्टूबर 2015
    "वजूद" शब्द राष्ट्र भाषा ज्ञान को दर्शा रहा है । एक नितांत सारहीन व अप्रासांगिक कविता है ।
  • author
    प्रीति 'अज्ञात'
    13 अक्टूबर 2015
    तुम्हारी ये कविता मुझे बहुत पसंद है. शुभकामनाएँ, प्रीति! :)
  • author
    Neelima Sharma Nivia "निविया"
    13 अक्टूबर 2015
    आप बहुत अच्छा  लिखती हैं प्रीति
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    Satyendra Kumar Upadhyay
    17 अक्टूबर 2015
    "वजूद" शब्द राष्ट्र भाषा ज्ञान को दर्शा रहा है । एक नितांत सारहीन व अप्रासांगिक कविता है ।
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    प्रीति 'अज्ञात'
    13 अक्टूबर 2015
    तुम्हारी ये कविता मुझे बहुत पसंद है. शुभकामनाएँ, प्रीति! :)
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    Neelima Sharma Nivia "निविया"
    13 अक्टूबर 2015
    आप बहुत अच्छा  लिखती हैं प्रीति