सूने कमरों में बेमतलब चक्कर लगाना, बार-बार माँ की चीजों को छूना, रसोई घर में बिसूरते मसाले के डिब्बों, बर्तनों को माँ के बिना देखने की पीड़ा इतनी अधिक चुभन भरी थी कि मैं काँच सी बार बार टूट कर झनझनाती ...
स्त्री के अंतर्मन को छूने वाली कहानी । पुराने समय में अपने मनकी बात कहने के लिए भी हिम्मत जुटानी पड़ती थी ।इतनी वर्जनाओं के उपरांत भी समाज सेवा से जुड़ी रही यह कम उपलब्धि नहीं है । अभाव में ही भाव होता है ।
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विडम्बना यही है कि मनुष्य के जाने के बाद ही उसकी महत्ता महसूस होती है। आपने मानव मनोभावों का भावपूर्ण चित्रण किया है।
कृपया मेरी कहानी *सीता का संघर्ष * पढ़कर विचार व्यक्त करें।
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