कर्ण - केशव संवाद रचियता- डॉ विजेंद्र सिंह हे केशव दुर्भाग्य मेरा यह, मैं तो हूं राधेय किंतु गुरु जी परशुराम ने क्षत्रिय माना देय क्षत्रिय हूं मैं तो गुरु ...
बहुत सुंदर रचना है भाईसाहब । वाकई कर्ण का दुर्भाग्य था कि प्रतिभासंपन्न होते हुए भी उसे केवल दुर्योधन की संगति के कारण विडंबनाओं का सामना करना पड़ा । उसका जीवन विरोधाभासों से भरा था किंतु सूर्यपुत्र कर्ण का नाम आज भी सूर्य की भांति प्रकाशमान है । मैं कर्ण के किरदार से बहुत प्रभावित हूँ ।
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बहुत सुंदर रचना है भाईसाहब । वाकई कर्ण का दुर्भाग्य था कि प्रतिभासंपन्न होते हुए भी उसे केवल दुर्योधन की संगति के कारण विडंबनाओं का सामना करना पड़ा । उसका जीवन विरोधाभासों से भरा था किंतु सूर्यपुत्र कर्ण का नाम आज भी सूर्य की भांति प्रकाशमान है । मैं कर्ण के किरदार से बहुत प्रभावित हूँ ।
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