'बलिदान केवल बलिदान' - चित्तौड़ की स्वतंत्रता देवी बलिदान चाहती है। बादल उमड़े थे, बिजलियाँ कड़की थीं और घोर अंधकार छा गया था। अपवित्रता पवित्रता पर कब्जा करना चाहती थी और अनाचार आचार और व्यवहार ...
जन्म : 26 अक्टूबर, 1890, अतरसुइया, इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश)
भाषा : हिंदी
विधाएँ : पत्रकारिता, निबंध, कहान
मुख्य कृतियाँ
गणेशशंकर विद्यार्थी संचयन (संपादक - सुरेश सलिल)
संपादन : कर्मयोगी, सरस्वती, अभ्युदय, प्रताप
निधन
25 मार्च, 1931 कानपुर
Article bhot acha hai... Lekin ek baat kehna chahenge Rana udaisingh ji bhage nhi the... I mean agar wo bhi apni ranbhumi mein shaheed hojate to mewar ko स्वतंत्रता dilane ka spna sirf sapna hi rehjata... Kyunki mewar ko bachane k liye mewar ke Rana ji ka jeena zarroori... Aur tbtk Maharana pratap gaddi par nhi bethe the... Isliye Ranaji hi ruler the.Agar wo bhi nhi rehte to aage kaise badhta mewar. Ye mugal चित्तौड़ ke saath saath pure mewar pr kbza jma lete.... Mewar ko bache k liye unka जीवित रहना अवश्यक था.
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बहुत ही अच्छा लेख लिखा आपने किन्तु आपने जो इस्लामी झंडे या इस्लामी सेना की बात लिखी है वह सही नहीं है 12 वी शताब्दी से पुर्व जब भारत पर मुस्लिम शासकों का शासन नहीं था तब राजपूत शासक आपस में ही एक दूसरे के राज्य को हड़पने के लिए लड़ा करते थे हर शासक यह चाहता था कि वो भारत का सम्राट बन जाए और चन्द्रगुप्त मौर्य विक्रमादित्य सम्राट अशोक जेसे ना जाने कितने ही राजाओं ने अन्य हिंदू शासक को हराकर ही अपना साम्राज्य का विस्तार करा था अब यदि अकबर का धर्म हटा दिया जाए तो वह भी अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था इसलिए ना तो उसका झंडा इस्लामी था न ही उसके सेनिक
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