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"कंगाली में आटा गीला"

4.6
8867

मेरा तबादला गुरुग्राम हो गया था ।आते ही सरकारी घर मिल गया तो अपना परिवार भी साथ ले आया ‌। हर 3 वर्ष बाद बदली होती, फिर नई जगह, नया घर, नए दोस्त, नया पड़ोस, बच्चों का नया स्कूल, नया सामान खरीदो, ...

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लेखक के बारे में
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संजू भदौरिया

ग्वालियर का रहने वाला हूं, फिलहाल शौक के तौर पर लिखता हूं, आगे प्रोफेशनल तौर पर भी लिखने की इच्छा है । शैक्षणिक योग्यता MA, NET (English) है । स्थानीय लेखकों से जुड़ना चाहता हूं, ऐसे इच्छुक लेखक संदेश के माध्यम से जुड़ सकते हैं । कोशिश है कहानी में ट्विस्ट हो, जो कहानी को क्लाइमेक्स तक ले जाता है और पाठकों को हंसाए, रुलाए, गुदगुदाए और एक अलग एहसास/अनुभव मिले।

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Smriti Prakash
    19 फ़रवरी 2022
    कितनी बेतुकी ऐसे बेवकूफ पति के साथ जिंदगी कैसे कटेगी? खुद मै मेहनत करूंगा नहीं,तुझे कमाने भी नहीं दूंगा,हद्द का स्वार्थी
  • author
    Tarun Shukla
    21 जुलाई 2021
    कहानी के अंत के लिए जो शिक्षा ली गई वो सही है पर उस कहानी में सटीक बिठाया ना जा सका। अगर गृहणी के पास पैसे होते हैं तो निश्चित ही वो मुसीबत के समय पर निकालती हैं ये सही है। पर जब नायक के विभागाध्यक्ष के यहां शादी की बात सुन के ना निकाला या चार हा भी ना कि की कुछ बचत पास में है तो समझ ना आया। जब सैंडिल टूटी तो पैसे होते हुए घर में रुकने को कहना फिर अचानक खरीद का अकेले पहुंचना थोड़ा अटपटा सा है। नाटकीयता दिखाने के चक्कर में कहानी की नायिका की मानसिकता के साथ न्याय इस कहानी में नहीं किया गया। वैसे उद्देश्य निश्चित ही सार्थक और सही है कि महिलाएं कितनी कठिन परिस्थिति में पैसे बचा कर मुसीबत के समय देती हैं।
  • author
    Mrs Mamta Gupta
    16 अक्टूबर 2021
    Real me bhi aisa hi hota h jb ghar me tangi ho to ladies ki invest hi kaam aati h
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    Smriti Prakash
    19 फ़रवरी 2022
    कितनी बेतुकी ऐसे बेवकूफ पति के साथ जिंदगी कैसे कटेगी? खुद मै मेहनत करूंगा नहीं,तुझे कमाने भी नहीं दूंगा,हद्द का स्वार्थी
  • author
    Tarun Shukla
    21 जुलाई 2021
    कहानी के अंत के लिए जो शिक्षा ली गई वो सही है पर उस कहानी में सटीक बिठाया ना जा सका। अगर गृहणी के पास पैसे होते हैं तो निश्चित ही वो मुसीबत के समय पर निकालती हैं ये सही है। पर जब नायक के विभागाध्यक्ष के यहां शादी की बात सुन के ना निकाला या चार हा भी ना कि की कुछ बचत पास में है तो समझ ना आया। जब सैंडिल टूटी तो पैसे होते हुए घर में रुकने को कहना फिर अचानक खरीद का अकेले पहुंचना थोड़ा अटपटा सा है। नाटकीयता दिखाने के चक्कर में कहानी की नायिका की मानसिकता के साथ न्याय इस कहानी में नहीं किया गया। वैसे उद्देश्य निश्चित ही सार्थक और सही है कि महिलाएं कितनी कठिन परिस्थिति में पैसे बचा कर मुसीबत के समय देती हैं।
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    Mrs Mamta Gupta
    16 अक्टूबर 2021
    Real me bhi aisa hi hota h jb ghar me tangi ho to ladies ki invest hi kaam aati h