मेरा तबादला गुरुग्राम हो गया था ।आते ही सरकारी घर मिल गया तो अपना परिवार भी साथ ले आया । हर 3 वर्ष बाद बदली होती, फिर नई जगह, नया घर, नए दोस्त, नया पड़ोस, बच्चों का नया स्कूल, नया सामान खरीदो, ...
ग्वालियर का रहने वाला हूं, फिलहाल शौक के तौर पर लिखता हूं, आगे प्रोफेशनल तौर पर भी लिखने की इच्छा है । शैक्षणिक योग्यता MA, NET (English) है । स्थानीय लेखकों से जुड़ना चाहता हूं, ऐसे इच्छुक लेखक संदेश के माध्यम से जुड़ सकते हैं । कोशिश है कहानी में ट्विस्ट हो, जो कहानी को क्लाइमेक्स तक ले जाता है और पाठकों को हंसाए, रुलाए, गुदगुदाए और एक अलग एहसास/अनुभव मिले।
सारांश
ग्वालियर का रहने वाला हूं, फिलहाल शौक के तौर पर लिखता हूं, आगे प्रोफेशनल तौर पर भी लिखने की इच्छा है । शैक्षणिक योग्यता MA, NET (English) है । स्थानीय लेखकों से जुड़ना चाहता हूं, ऐसे इच्छुक लेखक संदेश के माध्यम से जुड़ सकते हैं । कोशिश है कहानी में ट्विस्ट हो, जो कहानी को क्लाइमेक्स तक ले जाता है और पाठकों को हंसाए, रुलाए, गुदगुदाए और एक अलग एहसास/अनुभव मिले।
कहानी के अंत के लिए जो शिक्षा ली गई वो सही है पर उस कहानी में सटीक बिठाया ना जा सका। अगर गृहणी के पास पैसे होते हैं तो निश्चित ही वो मुसीबत के समय पर निकालती हैं ये सही है। पर जब नायक के विभागाध्यक्ष के यहां शादी की बात सुन के ना निकाला या चार हा भी ना कि की कुछ बचत पास में है तो समझ ना आया। जब सैंडिल टूटी तो पैसे होते हुए घर में रुकने को कहना फिर अचानक खरीद का अकेले पहुंचना थोड़ा अटपटा सा है। नाटकीयता दिखाने के चक्कर में कहानी की नायिका की मानसिकता के साथ न्याय इस कहानी में नहीं किया गया। वैसे उद्देश्य निश्चित ही सार्थक और सही है कि महिलाएं कितनी कठिन परिस्थिति में पैसे बचा कर मुसीबत के समय देती हैं।
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कहानी के अंत के लिए जो शिक्षा ली गई वो सही है पर उस कहानी में सटीक बिठाया ना जा सका। अगर गृहणी के पास पैसे होते हैं तो निश्चित ही वो मुसीबत के समय पर निकालती हैं ये सही है। पर जब नायक के विभागाध्यक्ष के यहां शादी की बात सुन के ना निकाला या चार हा भी ना कि की कुछ बचत पास में है तो समझ ना आया। जब सैंडिल टूटी तो पैसे होते हुए घर में रुकने को कहना फिर अचानक खरीद का अकेले पहुंचना थोड़ा अटपटा सा है। नाटकीयता दिखाने के चक्कर में कहानी की नायिका की मानसिकता के साथ न्याय इस कहानी में नहीं किया गया। वैसे उद्देश्य निश्चित ही सार्थक और सही है कि महिलाएं कितनी कठिन परिस्थिति में पैसे बचा कर मुसीबत के समय देती हैं।
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