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कानाफूसी

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मन अंतर में कानाफूसी, चले निरंतर भावों की। कभी उलझते धागे मन के, कभी जीत सद्भावों की। कहाँ प्रेम का पौधा रोपा, कब अहम की खटास हुई, किसने मरहम रखा जख्म पर, कब तबियत नासाज़ हुई। मैंने किसको कितना ...

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लेखक के बारे में
समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    sangeet a
    10 दिसम्बर 2023
    बहुत ही अच्छी तरह से आपने विचार प्रस्तुत किए हैं। बहुत बढ़िया है 👌👌
  • author
    Suresh Deshmukh
    12 दिसम्बर 2023
    लावणी छंद की लाजवाब रचना..👌✍️👍
  • author
    Satyam Sinha
    10 दिसम्बर 2023
    वाह बहुत खूब
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    sangeet a
    10 दिसम्बर 2023
    बहुत ही अच्छी तरह से आपने विचार प्रस्तुत किए हैं। बहुत बढ़िया है 👌👌
  • author
    Suresh Deshmukh
    12 दिसम्बर 2023
    लावणी छंद की लाजवाब रचना..👌✍️👍
  • author
    Satyam Sinha
    10 दिसम्बर 2023
    वाह बहुत खूब