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कमरा

4.2
320

बेतरतीब बिखरा हुआ मेरा ये कमरा, खुद में ही सिमटा हुआ, मेरा ये कमरा, सारी दुनिया छोटी सी, बढ़ा लगे मुझे मेरा कमरा, मेरी दुनिया उतनी सी, जितना सा ये मेरा कमरा, कोई आए, बैठे, आराम करे इसमें, कब से बैठा ...

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लेखक के बारे में

शासकीय सेवक के रूप में मध्‍यप्रदेश सरकार को अपनी सेवाऐं दे रहा हूं इसी के साथ हिन्‍दी भाषा की सेवा करने हेतु सरल और वर्तमान हिन्‍दी भाषा मेें मेरी रचनाऐं आप सभी के लिये। लेखन क्षेत्र में नवीन होने से, अपनी त्रुटियों के लिये क्षमाप्रार्थी रहूंगा।

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Sumedha Prakash
    15 अक्टूबर 2018
    वाह
  • author
    Mehar Singh
    30 जुलाई 2018
    osm
  • author
    Manjit Singh
    14 अगस्त 2020
    काव्य एकांत भाव को दर्शाती है।आपको शत नमन
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  • author
    Sumedha Prakash
    15 अक्टूबर 2018
    वाह
  • author
    Mehar Singh
    30 जुलाई 2018
    osm
  • author
    Manjit Singh
    14 अगस्त 2020
    काव्य एकांत भाव को दर्शाती है।आपको शत नमन