कहते हैं ये कलयुग की नारी है,, निर्लज्ज ओर व्याभिचारी हैं, ना लाज है न शर्म है,, ना कर्म है ना कोई धर्म है, ना डर है किसी का ना दाब है,, खुद को समझती आफताब है,, इज्जत नहीं खानदान की कुछ फिकर नहीं ...
बहुत ही उम्दा व्यंग्यात्मक काव्य था आपका पर मुझे लगता है थोड़ा और बैलेंसेड एप्रोच होनी चाहिए थी। माना कि कुछ लोग आजकल बिल्कुल संस्कारो को भूलते जा रहे हैं पर उसमे पुरुष और नारी का बराबर का योगदान है और मेरे खयाल से पुरुषों का ज्यादा है क्योंकि ज्यादातर लड़को को हाई–फाई लड़किया पसंद होती है और अच्छी लड़कियों को बहन जी बोल के चिढ़ाते है कुछ ऐसी ही स्तिथि पुरुषो की भी है तो किसी एक पक्ष को पूरी तरह गलत नहीं ठहरा सकते।
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सच में ना सिर्फ महिलाएं बल्कि पुरुष भी आज के समय में नैतिक मूल्यों और संस्कृति से जुड़े हुए नहीं हैं और कोई समझाने की कोशिश भी करे तो तथाकथित मॉडर्न और कूल लोगों को कुछ समझ में आना नहीं है। कोई भी सभ्यता दूसरी सभ्यता का अनुसरण करके आगे नहीं बढ़ सकती, काफी अच्छा लिखा आपने
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