मेरी माँ के द्वारा संवेदनात्मक तन्तुओं से बुनी कल्पना की चादर लपेटकर चलने वाली मैं,जीवन के कच्चे पथ की भावुक पथिक हूँ। जिसका जीवन- लक्ष्य उत्साह की उँगली थामकर मनोरमता से दिग्दर्शन करते हुए निरन्तर आगे की ओर बढ़ते जाना है ।आपके पास जब कभी समय हो तब आइयेगा मेरे शब्दगाह में,ज़्यादातर मैं वहीं रहती हूँ । संसार जब-जब मुझे गुमराह कर उबाने लगता है तब-तब स्वयं से छिपकर चुपचाप चली आती हूँ , अपनी शब्दगाह में सुस्ताने। शब्द की छाँव भर देती है मन के पोर-पोर में नई ऊर्जा.
रिपोर्ट की समस्या
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