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कलियुग के राम

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3.8

प्रेम की कोई परिभाषा नहीं होती... कोई स्वरूप नहीं होता... जब हम एक दूसरे की चिंता करते हैं, अपने रिश्तों को निभाते हैं तभी प्यार की सच्ची अभिव्यक्ति होती है। त्याग और अपनापन ही प्रेम की निशानी है। ...