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रिक्शों के हुजूम में मेरा रिक्शा भी बहुत धीरे ही सही मगर आगे बढ़ता जा रहा है। भीड़ इतनी है कि पैदल चलो तो कंधे छिलें। रिक्शे भी आपस में उलझ रहे हैं। अब तो यहाँ भीड़ और बढ ग़ई है। मैं फिर लौट रहा हूँ ...

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लेखक के बारे में

जन्म : 26 अगस्त 1967, जोधपुर शिक्षा – बी.एससी., एम. ए. (हिन्दी साहित्य), एम. फिल., विशारद ( कथक) प्रकाशित कृतियाँ – कहानी संग्रह - कठपुतलियाँ, कुछ भी तो रूमानी नहीं, बौनी होती परछांई, केयर ऑफ स्वात घाटी, गंधर्वगाथा, अनामा उपन्यास-  शिगाफ़ ,  शालभंजिका,  पंचकन्या अनुवाद – माया एँजलू की आत्मकथा ‘ वाय केज्ड बर्ड सिंग’ के अंश, लातिन अमरीकी लेखक मामाडे के उपन्यास ‘हाउस मेड ऑफ डॉन’ के अंश, बोर्हेस की कहानियों का अनुवाद पुरस्कार, सम्मान और फैलोशिप : कृष्ण बलदेव वैद फैलोशिप – 2007 रांगेय राघव पुरस्कार वर्ष 2010 ( राजस्थान साहित्य अकादमी) कृष्ण प्रताप कथा सम्मान 2011 गीतांजलि इण्डो – फ्रेंच लिटरेरी प्राईज़ 2012 ज्यूरीअवार्ड रज़ा फाउंडेशन फैलोशिप – 2013 अन्य साऊथ एशियन लैग्वेज इंस्टीट्यूट, हायडलबर्ग (जर्मनी) में उपन्यास ‘शिगाफ़’ का अंश पाठ व रचना प्रक्रिया पर आलेख प्रस्तुति. (2011) नौवें विश्व सम्मेलन (2012) जोहांसबर्ग में शिरकत. और सूचना प्रोद्योगिकी और देवनागरी का सामर्थ्य विषय पर पर्चा संप्रति – स्वतंत्र लेखन और इंटरनेट की पहली हिन्दी वेबपत्रिका ‘हिन्दीनेस्ट’ का पंद्रह वर्षों से संपादन.

समीक्षा
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  • author
    Rajendra Singh Gahlot
    27 ସେପ୍ଟେମ୍ବର 2018
    ऐसी दुनिया की कहानी है जिससे आम पाठक रु बरु नही है इसलिये इस कहानी का मूल्यांकन वही कर सकता है जिसने कहानी मे चित्रित दुनिया देखी हो फिलहाल तो बस यही कहा जा सकता है एक अंधेरे की दुनिया को कहानीकार ने उजाले मे लानेका प्रयास किया है
  • author
    Poonam Aggarwal
    23 ମେ 2020
    एक उत्कृष्ट दर्ज़े की साहित्यिक कृति है यह कहानी । भाषा चुटीली और मन्तव्य को पूर्णतः स्पष्ट करने में सक्षम है । कई साल पहले मैंने महान कहानीकार कमलेश्वर जी का कहानी संग्रह पढ़ा था ' पिछले पन्ने की औरतें ' , यह कहानी उसी के समकक्ष है । कथावस्तु एकदम अलग हटकर है जो ऐसे वर्ग के जीवन पर प्रकाश डालती है जो back the stage रहते हैं और उन्हें अपनी कला में प्रयोग करके कलाकार femus होते हैं । अन्त बहुत बढ़िया और प्रेक्टिकल है । जब इंसान खुद यथार्थ के धरातल पर आता है तो क्या अनुभूति होती है । आपकी लेखनी को नमन । 🙏🙏👌👌👋👋🌹🌹😊
  • author
    29 ଅକ୍ଟୋବର 2018
    इस माॅडलिंग का वीडियो मैंने देखा है लेकिन इतनी बारीकी तो उन छात्रों की कूची और उस कैमरे में भी कैद नहीं हुई थी जितनी आपने कलम से कागज पर उतार दी है। बधाई।
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    Rajendra Singh Gahlot
    27 ସେପ୍ଟେମ୍ବର 2018
    ऐसी दुनिया की कहानी है जिससे आम पाठक रु बरु नही है इसलिये इस कहानी का मूल्यांकन वही कर सकता है जिसने कहानी मे चित्रित दुनिया देखी हो फिलहाल तो बस यही कहा जा सकता है एक अंधेरे की दुनिया को कहानीकार ने उजाले मे लानेका प्रयास किया है
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    Poonam Aggarwal
    23 ମେ 2020
    एक उत्कृष्ट दर्ज़े की साहित्यिक कृति है यह कहानी । भाषा चुटीली और मन्तव्य को पूर्णतः स्पष्ट करने में सक्षम है । कई साल पहले मैंने महान कहानीकार कमलेश्वर जी का कहानी संग्रह पढ़ा था ' पिछले पन्ने की औरतें ' , यह कहानी उसी के समकक्ष है । कथावस्तु एकदम अलग हटकर है जो ऐसे वर्ग के जीवन पर प्रकाश डालती है जो back the stage रहते हैं और उन्हें अपनी कला में प्रयोग करके कलाकार femus होते हैं । अन्त बहुत बढ़िया और प्रेक्टिकल है । जब इंसान खुद यथार्थ के धरातल पर आता है तो क्या अनुभूति होती है । आपकी लेखनी को नमन । 🙏🙏👌👌👋👋🌹🌹😊
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    29 ଅକ୍ଟୋବର 2018
    इस माॅडलिंग का वीडियो मैंने देखा है लेकिन इतनी बारीकी तो उन छात्रों की कूची और उस कैमरे में भी कैद नहीं हुई थी जितनी आपने कलम से कागज पर उतार दी है। बधाई।