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कैद में मां

4.5
703

जब कभी आती है मां उथलपुथल मच जाती है मेरे उस घर में जो राजधानी के सबसे पॉश इलाके में भौतिक सुविधाओं से लक-दक अशोक वृक्षों के पीछे इतराता खड़ा है मां आती है और उसकी गुर्राहट को झाड़ पिला देती है मां ...

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लेखक के बारे में
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आलोक पराड़कर

गोरखपुर में जन्म। करीब 25 वर्षों की पत्रकारिता, पहले वाराणसी और अब लखनऊ में। आज, दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान, अमर उजाला, जनसंदेश टाइम्स और कल्पतरु एक्सप्रेस में नौकरी। समाचार संकलन एवं सम्पादन के साथ साहित्यिक-सांस्कृतिक पत्रकारिता में विशेष दखल, संगीत,कला और रंगमंच पर चिन्तनपरक लेखन। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में साक्षात्कार, समीक्षाएं, लेख एवं टिप्पणियां प्रकाशित। उस्ताद बिस्मल्लाह खान, गुदई महाराज, किशन महाराज, गिरिजा देवी, हरिप्रसाद चौरसिया, राजन-साजन मिश्र जैसे प्रसिद्ध कलाकारों का विशेष तौर पर सानिध्य। पं. किशन महाराज के 80 वें जन्मदिवस पर अभिनन्दन ग्रन्थ का सम्पादन। वाराणसी के विविध पक्षों और वाराणसी के रंगमंच पर अलग-अलग पुस्तकों का सम्पादन। दादा सम्पादकाचार्य बाबूराव विष्णु पराड़कर पर राष्ट्रीय दूरदर्शन द्वारा निर्मित वृत्तचित्र क्रान्तिकारी पत्रकार तथा लखनऊ दूरदर्शन की नगर कथा में वाराणसी, बांदा, चित्रकूट नगरों पर आधारित कार्यक्रमों के लिए शोध एवं आलेख। कविताएं भी लिखीं जो तद्भव, नया ज्ञानोदय, लमहीमें प्रकाशित।यूनेस्को एवं संस्कृति मंत्रालय की अस्पृश्य सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण की संयुक्त योजना के अन्तर्गत रामलीला पर कार्य के लिए शोधवृत्ति। सम्प्रति लखनऊ से प्रकाशित कला, संगीत एवं रंगमंच की त्रैमासिक पत्रिक कलास्रोत के सम्पादक। 09415466001, [email protected]

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    rajesh kumar
    29 अक्टूबर 2015
    मां पर कई कव‌िताएं ल‌िखी गई हैं ले‌क‌िन यह अनूठी है और गांव से पलायन कर आए लोगों के जीवन तथा उनके अन्तरव‌िरोधों का ज‌िक्र करती है। बहुत ही प्रभावशाली है।
  • author
    reena bapat
    28 अक्टूबर 2015
    बहुत ही उम्दा कविता है। ग्रामीण और शहरी जीवन के अन्तर का मां के माध्यम से बेहतरीन चित्रण है।
  • author
    bhupendra asthana
    29 अक्टूबर 2015
    bahut hi sundar abhivyakti kiya hai aapne is kavita k madhyam se .
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    rajesh kumar
    29 अक्टूबर 2015
    मां पर कई कव‌िताएं ल‌िखी गई हैं ले‌क‌िन यह अनूठी है और गांव से पलायन कर आए लोगों के जीवन तथा उनके अन्तरव‌िरोधों का ज‌िक्र करती है। बहुत ही प्रभावशाली है।
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    reena bapat
    28 अक्टूबर 2015
    बहुत ही उम्दा कविता है। ग्रामीण और शहरी जीवन के अन्तर का मां के माध्यम से बेहतरीन चित्रण है।
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    bhupendra asthana
    29 अक्टूबर 2015
    bahut hi sundar abhivyakti kiya hai aapne is kavita k madhyam se .