pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

कहीं रूठना मनाना चल रहा है

4.4
2775

कहीं रूठना मनाना चल रहा है इसी से तो ज़माना चल रहा है गमों के दौर मे क्या अब कहें हम लबों का मुस्कुराना चल रहा है किराये का है ये जिस्म तेरा जहां मे बस ठिकाना चल रहा है न जाने जिंदगी कब रूठ जाये ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    kuldeep dubey
    13 फ़रवरी 2017
    शाश्वत सत्य
  • author
    Rijvan Khan
    22 अप्रैल 2020
    बहुत अच्छा लिखती है आप आप ने इस कविता के माध्यम से बहुत कुछ समझाने की कोसिस की है, मुझे आप की ये कविता बहुत अच्छी लगी।
  • author
    03 सितम्बर 2018
    समाज के हर पहलू को स्पर्श करती यह रचना काबिले तारीफ है ।
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    kuldeep dubey
    13 फ़रवरी 2017
    शाश्वत सत्य
  • author
    Rijvan Khan
    22 अप्रैल 2020
    बहुत अच्छा लिखती है आप आप ने इस कविता के माध्यम से बहुत कुछ समझाने की कोसिस की है, मुझे आप की ये कविता बहुत अच्छी लगी।
  • author
    03 सितम्बर 2018
    समाज के हर पहलू को स्पर्श करती यह रचना काबिले तारीफ है ।