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कहीं रूठना मनाना चल रहा है

4.3
2399

कहीं रूठना मनाना चल रहा है इसी से तो ज़माना चल रहा है गमों के दौर मे क्या अब कहें हम लबों का मुस्कुराना चल रहा है किराये का है ये जिस्म तेरा जहां मे बस ठिकाना चल रहा है न जाने जिंदगी कब रूठ जाये ...

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समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    kuldeep dubey
    13 फ़रवरी 2017
    शाश्वत सत्य
  • author
    Rijvan Khan
    22 अप्रैल 2020
    बहुत अच्छा लिखती है आप आप ने इस कविता के माध्यम से बहुत कुछ समझाने की कोसिस की है, मुझे आप की ये कविता बहुत अच्छी लगी।
  • author
    amitnarayan gupta
    02 मई 2020
    बहुत अच्छी रचना है।। क़यामत और खूनी बरस पढकर अपने विचार दें।
  • author
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    kuldeep dubey
    13 फ़रवरी 2017
    शाश्वत सत्य
  • author
    Rijvan Khan
    22 अप्रैल 2020
    बहुत अच्छा लिखती है आप आप ने इस कविता के माध्यम से बहुत कुछ समझाने की कोसिस की है, मुझे आप की ये कविता बहुत अच्छी लगी।
  • author
    amitnarayan gupta
    02 मई 2020
    बहुत अच्छी रचना है।। क़यामत और खूनी बरस पढकर अपने विचार दें।