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कहीं रूठना मनाना चल रहा है

4.4
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कहीं रूठना मनाना चल रहा है इसी से तो ज़माना चल रहा है गमों के दौर मे क्या अब कहें हम लबों का मुस्कुराना चल रहा है किराये का है ये जिस्म तेरा जहां मे बस ठिकाना चल रहा है न जाने जिंदगी कब रूठ जाये सांसों का आना जाना चल रहा है घरोंदे जो परिंदों ने बनाये शिकारी का निशाना चल रहा है वफा की बात अब तो मत ही करना नया कोई बहाना चल रहा है है झूठा इश्क वादे भी है झूठे कि रिश्तों को निभाना चल रहा है हैं चर्चे हर कहीं तो अब शहर में नया सा आशिकाना चल रहा है चमन जो तेरे दिल का है खिला सा हवा से दोस्ताना चल रहा ...

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समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Rijvan Khan
    22 एप्रिल 2020
    बहुत अच्छा लिखती है आप आप ने इस कविता के माध्यम से बहुत कुछ समझाने की कोसिस की है, मुझे आप की ये कविता बहुत अच्छी लगी।
  • author
    kuldeep dubey
    13 फेब्रुवारी 2017
    शाश्वत सत्य
  • author
    03 सप्टेंबर 2018
    समाज के हर पहलू को स्पर्श करती यह रचना काबिले तारीफ है ।
  • author
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  • author
    Rijvan Khan
    22 एप्रिल 2020
    बहुत अच्छा लिखती है आप आप ने इस कविता के माध्यम से बहुत कुछ समझाने की कोसिस की है, मुझे आप की ये कविता बहुत अच्छी लगी।
  • author
    kuldeep dubey
    13 फेब्रुवारी 2017
    शाश्वत सत्य
  • author
    03 सप्टेंबर 2018
    समाज के हर पहलू को स्पर्श करती यह रचना काबिले तारीफ है ।