कविता: बढ़ता चल तू ख़ामोश कदमों से
बढ़ता चल तू ख़ामोश कदमों से
सुन शोर तो तबाही लाती हैं।
दुख के सूखे वृक्ष की डाली भी
पछियो की चेचाहट से मुस्काती है।
बढ़ता चल तू ख़ामोश कदमों से
हताशा से ठहर के पछताने से
क्या किस्मत बदल जाती हैं।
काले घनघोर साए में देख
जुगनू की लौ कैसे टिमटिमाती है।
बढ़ता चल तू ख़ामोश कदमों से
सुन शोर तो तबाही लाती हैं।।
तू नजरंदाज करना सीख
ये नजरो के अल्फाज़ सिखाती है
बेजुबानों से भरी बस्ती है
जुबां कहां रंग लाती हैं।
बढ़ता चल तू ख़ामोश कदमों से
सुन शोर तो तबाही लाती हैं।।
आंवले के कड़वे रस से
उसमे छिपी मिठास क्या छिप जाती है
मेंहदी अपनी रंगत भी देख
घिस जाने के बाद ही लाती हैं।
बढ़ता चल तू ख़ामोश कदमों से
सुन शोर तो तबाही लाती है।।
सोनिया भारती
रिपोर्ट की समस्या
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