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काग़ज़ की कश्ती की मजबूरी

4.8
110

काग़ज़ की कश्ती की मजबूरी...... टप - टप बूंदें गिरने लगी थीं। ठंडी  हवाओं के झोंकों से शाखें हिल हिलकर बारिश का स्वागत करती हुई - सी प्रतीत होती थी। आशा के सात वर्षीय बेटे मन्नू का चेहरा उमंग में ...

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लेखक के बारे में

शक्तिरूपेण संस्थिताम।।🙏 #my_universe is here in my Stories समझदारी से चलो वरना हर कुएं की मुंडेर नहीं होती गिर गए तो बचना मुश्किल है, बच गए तो किस्मत , हर दफा दिलेर नहीं होती।। (Don't try to copy any content ) ©️सर्वाधिकार सुरक्षित । 💁 धन्यवाद

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Satish Kumar "अश्क"
    16 जुलाई 2020
    जी बहुत ही बढिया रचना है आपकी मन को भावनाओ से भर दिया...
  • author
    Toshmani 😊😊
    16 जुलाई 2020
    वाह बहुत अच्छी कहानी
  • author
    pakhi verma verma "pakhi"
    16 जुलाई 2020
    nice 👌👌✍️
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    Satish Kumar "अश्क"
    16 जुलाई 2020
    जी बहुत ही बढिया रचना है आपकी मन को भावनाओ से भर दिया...
  • author
    Toshmani 😊😊
    16 जुलाई 2020
    वाह बहुत अच्छी कहानी
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    pakhi verma verma "pakhi"
    16 जुलाई 2020
    nice 👌👌✍️