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काबे की है हवस

4.6
302

काबे की है हवस कभी कू-ए-बुतां की है मुझ को ख़बर नहीं मेरी मिट्टी कहाँ की है कुछ ताज़गी हो लज्जत-ए-आज़ार के लिए हर दम मुझे तलाश नए आसमां की है हसरत बरस रही है मेरे मज़ार से कहते है सब ये कब्र किसी ...

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लेखक के बारे में
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दाग़ देहलवी
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    मल्हार
    02 जून 2020
    👌👌👌👌
  • author
    अभिनंदन कुमार
    20 जनवरी 2020
    अच्छा है
  • author
    26 मार्च 2019
    शानदार 👌
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    मल्हार
    02 जून 2020
    👌👌👌👌
  • author
    अभिनंदन कुमार
    20 जनवरी 2020
    अच्छा है
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    26 मार्च 2019
    शानदार 👌