"शिवांश... शिवांश उठो...देखो मैं हूँ" , एक अत्यंत कोमल एवं मादक स्वर मेरे कानों में पड़ा। मैंने धीरे से आँखें खोली, आँखें खोलते ही तीव्र प्रकाश से मेरी आँखें अपने आप बन्द हो गयी। मैंने फिर धीरे ...
बेहद अच्छी रचना थी, लंबे समय बाद कोई ऐसी रचना पढ़ी, जिसमे आध्यात्म, दर्शन, मनोविज्ञान, संस्कृति, और पारलौकिक संसार की "वास्तविक परिकल्पना" का सम्पुट हो, अतिसुन्दर ओर साधुवाद के योग्य, किन्तु दुखांत नाटक ने मन को विषादग्रस्त कर दिया, सुखांत तब होता जब नायक अकस्मात अपनी पत्नी को विवाह के मंडप में देखता ओर उसका चेहरा उस यक्षिणी से मिलता, तब वह प्रेम पूर्ण हो जाता और कहानी भी।
रिपोर्ट की समस्या
सुपरफैन
अपने प्रिय लेखक को सब्सक्राइब करें और सुपरफैन बनें !
बेहद अच्छी रचना थी, लंबे समय बाद कोई ऐसी रचना पढ़ी, जिसमे आध्यात्म, दर्शन, मनोविज्ञान, संस्कृति, और पारलौकिक संसार की "वास्तविक परिकल्पना" का सम्पुट हो, अतिसुन्दर ओर साधुवाद के योग्य, किन्तु दुखांत नाटक ने मन को विषादग्रस्त कर दिया, सुखांत तब होता जब नायक अकस्मात अपनी पत्नी को विवाह के मंडप में देखता ओर उसका चेहरा उस यक्षिणी से मिलता, तब वह प्रेम पूर्ण हो जाता और कहानी भी।
रिपोर्ट की समस्या
सुपरफैन
अपने प्रिय लेखक को सब्सक्राइब करें और सुपरफैन बनें !
रिपोर्ट की समस्या
रिपोर्ट की समस्या
रिपोर्ट की समस्या