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कामेश्वरी यक्षिणी

4.1
6409

"शिवांश... शिवांश उठो...देखो मैं हूँ" , एक अत्यंत कोमल एवं मादक स्वर मेरे कानों में पड़ा। मैंने धीरे से आँखें खोली, आँखें खोलते ही तीव्र प्रकाश से मेरी आँखें अपने आप बन्द हो गयी। मैंने फिर धीरे ...

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लेखक के बारे में
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Satyam Kapoor
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Kushagra Mishra
    10 अगस्त 2019
    बेहद अच्छी रचना थी, लंबे समय बाद कोई ऐसी रचना पढ़ी, जिसमे आध्यात्म, दर्शन, मनोविज्ञान, संस्कृति, और पारलौकिक संसार की "वास्तविक परिकल्पना" का सम्पुट हो, अतिसुन्दर ओर साधुवाद के योग्य, किन्तु दुखांत नाटक ने मन को विषादग्रस्त कर दिया, सुखांत तब होता जब नायक अकस्मात अपनी पत्नी को विवाह के मंडप में देखता ओर उसका चेहरा उस यक्षिणी से मिलता, तब वह प्रेम पूर्ण हो जाता और कहानी भी।
  • author
    नीता राठौर
    06 अगस्त 2019
    कहानी रोमांचक होने लगी थी और अचानक समाप्त हो गई। ऐसा लग रहा जैसे ठगे गए हों हम। बहरहाल कहानी अच्छी जा रही थी।
  • author
    Shweta Saxena
    13 सितम्बर 2020
    बहुत अच्छी लगी कहानी
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    Kushagra Mishra
    10 अगस्त 2019
    बेहद अच्छी रचना थी, लंबे समय बाद कोई ऐसी रचना पढ़ी, जिसमे आध्यात्म, दर्शन, मनोविज्ञान, संस्कृति, और पारलौकिक संसार की "वास्तविक परिकल्पना" का सम्पुट हो, अतिसुन्दर ओर साधुवाद के योग्य, किन्तु दुखांत नाटक ने मन को विषादग्रस्त कर दिया, सुखांत तब होता जब नायक अकस्मात अपनी पत्नी को विवाह के मंडप में देखता ओर उसका चेहरा उस यक्षिणी से मिलता, तब वह प्रेम पूर्ण हो जाता और कहानी भी।
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    नीता राठौर
    06 अगस्त 2019
    कहानी रोमांचक होने लगी थी और अचानक समाप्त हो गई। ऐसा लग रहा जैसे ठगे गए हों हम। बहरहाल कहानी अच्छी जा रही थी।
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    Shweta Saxena
    13 सितम्बर 2020
    बहुत अच्छी लगी कहानी