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जूते

3.9
6346

उन्हें झूला झूलना नहीं था, क्योंकि वे झूल-झूलकर थक चुकी थीं। दोनों की सफेद शर्ट पसीने से भींग चुकी थीं। मगर झूला किसी दूसरे को भी नहीं देना था, कम से कम तब तक तो नहीं देना था जब तक की इंटरवल खत्म ...

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लेखक के बारे में

प्रकाशित पुस्तकें:- कविता संग्रह- क्योंकि मैं औरत हूँ कहानी संग्रह- समुद्र की रेत, मन का मनका फेर, सात दिन की माँ उपन्यास- अबकी नौकरी छोड़ दूँगी, सिंहासन का शीशा

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    14 जनवरी 2020
    अच्छा लेखन है। सबसे बड़ी विशेषता आपकी लेखनी की ये है कि सब कुछ अपनी आंखों के समक्ष चलचित्र के समान दिखता जाता है। पर हां कुछ अधूरापन सा है कहानी में
  • author
    Omee Bhargava
    17 जून 2018
    इसे व्यंग कहना गलत होगा यह एक निरुद्देश्य कहानी की श्रेणी में आती है
  • author
    Lövíñg Ñk
    14 नवम्बर 2017
    bakwas
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  • author
    14 जनवरी 2020
    अच्छा लेखन है। सबसे बड़ी विशेषता आपकी लेखनी की ये है कि सब कुछ अपनी आंखों के समक्ष चलचित्र के समान दिखता जाता है। पर हां कुछ अधूरापन सा है कहानी में
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    Omee Bhargava
    17 जून 2018
    इसे व्यंग कहना गलत होगा यह एक निरुद्देश्य कहानी की श्रेणी में आती है
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    Lövíñg Ñk
    14 नवम्बर 2017
    bakwas