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जीते-जी कूचा-ए-दिलदार से जाया न गया

4.1
508

जीते-जी कूचा-ए-दिलदार से जाया न गया उसकी दीवार का सर से मेरे साया न गया गुल में उसकी सी जो बू आई तो आया न गया हमको बिन दोश-ए-सबा बाग से लाया न गया दिल में रह दिल में कि मे मीर-ए-कज़ा से अब तक ऐसा ...

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लेखक के बारे में
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मीर तकी मीर

परिचय मूल नाम : मोहम्मद तकी जन्म : 1723 आगरा (अकबरपुर) भाषा : उर्दू, फारसी निधन - 21 सितम्बर 1810 ( लखनऊ )

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Sumit Saini
    23 अक्टूबर 2023
    Meer taki meer Sahab bahut hi umda Shayar the.
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    13 अप्रैल 2022
    बहुत ही उम्दा ग़ज़ल , सुभान अल्लाह ।
  • author
    Manjit Singh
    17 जुलाई 2020
    Marvellous
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  • author
    Sumit Saini
    23 अक्टूबर 2023
    Meer taki meer Sahab bahut hi umda Shayar the.
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    13 अप्रैल 2022
    बहुत ही उम्दा ग़ज़ल , सुभान अल्लाह ।
  • author
    Manjit Singh
    17 जुलाई 2020
    Marvellous