जिस सर को ग़रूर आज है याँ ताजवरी का कल जिस पे यहीं शोर है फिर नौहागरी का आफ़ाक़ की मंज़िल से गया कौन सलामात असबाब लुटा राह में याँ हर सफ़री का ज़िन्दाँ में भी शोरिशन गयी अपने जुनूँ की अब संग मदावा है ...
जिस सर को ग़रूर आज है याँ ताजवरी का कल जिस पे यहीं शोर है फिर नौहागरी का आफ़ाक़ की मंज़िल से गया कौन सलामात असबाब लुटा राह में याँ हर सफ़री का ज़िन्दाँ में भी शोरिशन गयी अपने जुनूँ की अब संग मदावा है ...