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जिस सर को ग़रूर आज है याँ ताजवरी का

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जिस सर को ग़रूर आज है याँ ताजवरी का कल जिस पे यहीं शोर है फिर नौहागरी का आफ़ाक़ की मंज़िल से गया कौन सलामात असबाब लुटा राह में याँ हर सफ़री का ज़िन्दाँ में भी शोरिशन गयी अपने जुनूँ की अब संग मदावा है ...

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लेखक के बारे में

मूल नाम : मिर्ज़ा असदउल्ला बेग़ ख़ान ग़ालिब जन्म : 27 दिसंबर 1796, आगरा (उत्तर प्रदेश) भाषा : उर्दू, फ़ारसी विधाएँ : गद्य, पद्य निधन - 15 फरवरी 1869, दिल्ली

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Manoj Dwivedi
    10 जुलाई 2018
    ये तो मीर की ग़ज़ल है, ग़ालिब के नाम पर इसे क्यों डाला गया है??
  • author
    Kalpana Rawal
    07 जून 2019
    Lines bhaut aachi hai. good work
  • author
    Yashwant Singh
    06 मई 2017
    very nice
  • author
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Manoj Dwivedi
    10 जुलाई 2018
    ये तो मीर की ग़ज़ल है, ग़ालिब के नाम पर इसे क्यों डाला गया है??
  • author
    Kalpana Rawal
    07 जून 2019
    Lines bhaut aachi hai. good work
  • author
    Yashwant Singh
    06 मई 2017
    very nice