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जिंदगी की शाम के सूरज हज़ार देखे है

4.5
607

ज़िंदगी की शाम के सूरज हज़ार देखे हैं इस पथिक ने राह में बस इंतज़ार देखे हैं मन्ज़िलों की दौड़ में अंत तक जो साथ दे काफिले की भीड़ में बस तीन चार देखे हैं हो गयी है जंग सी इस ज़िंदगी के साथ हमने भी ...

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लेखक के बारे में

मैं कवि नहीं हूं। पर कविताओं के मर्म से निकले रस का साधक जरूर हूँ। यूँ ही कभी कभी मेरे विचारो का दरिया मेरी कलम की इंक बनकर बह जाता है और कविता सृजित हो जाती है । पर मैं कवि नहीं हूं।

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Sumedha Prakash
    02 அக்டோபர் 2018
    बहुत ही सुंदर किंतु छोटी रचना
  • author
    BHUSHAN KHARE
    16 மே 2018
    बहुत अच्छी रचना
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    10 மே 2023
    बहुत ही लाज़वाब गज़ल । हार्दिक साधुवाद
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    Sumedha Prakash
    02 அக்டோபர் 2018
    बहुत ही सुंदर किंतु छोटी रचना
  • author
    BHUSHAN KHARE
    16 மே 2018
    बहुत अच्छी रचना
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    10 மே 2023
    बहुत ही लाज़वाब गज़ल । हार्दिक साधुवाद