ज़िंदगी की शाम के सूरज हज़ार देखे हैं इस पथिक ने राह में बस इंतज़ार देखे हैं मन्ज़िलों की दौड़ में अंत तक जो साथ दे काफिले की भीड़ में बस तीन चार देखे हैं हो गयी है जंग सी इस ज़िंदगी के साथ हमने भी ...
मैं कवि नहीं हूं। पर कविताओं के मर्म से निकले रस का साधक जरूर हूँ। यूँ ही कभी कभी मेरे विचारो का दरिया मेरी कलम की इंक बनकर बह जाता है और कविता सृजित हो जाती है । पर मैं कवि नहीं हूं।
सारांश
मैं कवि नहीं हूं। पर कविताओं के मर्म से निकले रस का साधक जरूर हूँ। यूँ ही कभी कभी मेरे विचारो का दरिया मेरी कलम की इंक बनकर बह जाता है और कविता सृजित हो जाती है । पर मैं कवि नहीं हूं।
रिपोर्ट की समस्या
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