आमजन पहले नेताओ को ही असत्य के ठेकेदार की श्रद्धा से देखते थे। इसका कारण था चुनाव मे किये वादो को नेताजी चुनाव जीतने के बाद ऐसे भूलते हैं जैसे एक्जाम हाल मे बैठा बच्चा पेपर देखते ही सारे जबाव भूल ...
बहुत अच्छी रचना है परंतु मुझे लगता है कि इसे कुछ दिनों के बाद लेखक को एक बार फिर से इसे लिखना चाहिए ताकि इसमें शामिल हुई वैचारिक पुनरावृत्ति हटाई जा सके इसकी भाषा को भी और चुस्त दुरुस्त करने की जरूरत है इस तरह के तथ्य से व्यंग भाषा की चुटकी से ही रेखांकित होगा कंटेंट बहुत अच्छा है रचना को थोड़ा और संभाल दिया जाए तो यही एक और प्रभावशाली रचना बन सकती है गौड साहब को मेरी शुभकामनाएं प्रूफ की हंसी गलतियां हैं जो खटकती हैं
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बहुत अच्छी रचना है परंतु मुझे लगता है कि इसे कुछ दिनों के बाद लेखक को एक बार फिर से इसे लिखना चाहिए ताकि इसमें शामिल हुई वैचारिक पुनरावृत्ति हटाई जा सके इसकी भाषा को भी और चुस्त दुरुस्त करने की जरूरत है इस तरह के तथ्य से व्यंग भाषा की चुटकी से ही रेखांकित होगा कंटेंट बहुत अच्छा है रचना को थोड़ा और संभाल दिया जाए तो यही एक और प्रभावशाली रचना बन सकती है गौड साहब को मेरी शुभकामनाएं प्रूफ की हंसी गलतियां हैं जो खटकती हैं
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