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झांनवाद्दन

4.6
7398

हम सब उसी दिन ‘चार वाली’ से अपने गांव आये थे, चार वाली मतलब, सुबह के चार बजे हल्दौर स्टेशन पर पहुंचने वाली ट्रेन। वैसे तो यह सुबह लगभग पौने छह बजे पहुंची थी, अब तो कभी-कभी सात बजे भी पहुंचती है पर ...

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लेखक के बारे में

नाम - निर्देश निधि , जन्म-3 जून, शिक्षा - एम फिल (इतिहास) लेखन विधा – कहानी ,कविता,संस्मरण,समसामयिक लेख। विभिन्न स्तरीय पत्र - पत्रिकाओं जैसे "अमरउजाला”, “जनसत्ता”, “दैनिक जागरण” ,”पंजाब केसरी”,”कादंबिनी” ,‘हंस’,‘पाखी’,‘कथाक्रम’,‘कथा’ (मार्कण्डेय(“ “कृति ओर” , “ इंद्रप्रस्थ भारती,” “निकट” (अरब इमारत), “नई धारा,” ‘अभिनव इमरोज,’ ‘उद्भावना’,‘परिंदे’ , ‘विपाशा’, ‘द्वीपलहरी’,‘सम्बोधन’ ‘अविराम’, ‘विज्ञान गरिमा सिंधु’ ‘सरिता’ ,’पूर्वकथन’, ‘बुलंदप्रभा’, ‘गाथांतर’, “सृजन से”,“सम्प्रेषण”, “किरण वार्ता”,”यथावत” ‘बिंदिया,’अट्टहास’, जनक्षेत्र, विश्वगाथा आदि अनेक पत्रिकाओं में कवितायें लेख,कहानियाँ,संस्मरण,लघुकथाएँ,आदि प्रकाशित। एक कहानी संग्रह “झांनवाद्दन” प्रकाशित । आकाशवाणी से निरंतर रचनाएँ प्रसारित। पर्यावरण पर लिखी एक कविता ”विनती” हिन्दी पाठ्यक्रम में सम्मिलित । विभिन्न स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में रेखाचित्र प्रकाशित कई कहानी और कविता संकलनों में कहानियाँ और कविताएं प्रकाशित । वर्तमान मेँ – ‘बुलंदप्रभा’ त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका मेँ उपसंपादक नगर पालिका बुलंदशहर की त्रैमासिक पत्रिका ”प्रगति” का सम्पादन एक सामूहिक काव्य संग्रह ” "परिवर्तन का सम्पादन । साहित्यिक गतिविधियों और , जन कल्याणकारी संस्थाओं में सक्रिय ।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Sandhya Rajput "साँझ"
    19 मई 2018
    बेहद मार्मिक कहानी।क्या सच में एक औरत बस इक मास का टुकड़ा है ।आज भी कुछ खास बदलाव नही ।दिल को छु लिया कहानी ने
  • author
    Sanjeev Kumar "Guddu"
    20 सितम्बर 2018
    अजीमुद्दीन को भी सज़ा मिल ही गई, मार्मिक कहानी है, अंत सुखद रहा
  • author
    नेहा बिंदल
    24 नवम्बर 2019
    इस समाज मे स्त्रियो की दुर्दशा के लिए स्त्री ही जिम्मेदार है। रेशमा जैसी औरते जब अपने ही घर मे सुरक्षित नही तो कोई स्त्री शशक्तिकरण अभियान बेटी बचाओ बेटो पढ़ाओ अभियान या फिर कोई नारीवादी अभियान क्या कर लेगा।। वाकई कोई स्त्री कितनी भी सशक्त क्यो न हो कहीं न कही ईस समाज में अबला बना ही दी जाती है।। निर्देश जी आपकी भाषा शैली अत्यंत ही सुंदर और सटीक है साथ ही आपका शब्दकोश भी बहुत सुंदर है। इस मार्मिक रचना पर आपको हार्दिक बधाई।
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    Sandhya Rajput "साँझ"
    19 मई 2018
    बेहद मार्मिक कहानी।क्या सच में एक औरत बस इक मास का टुकड़ा है ।आज भी कुछ खास बदलाव नही ।दिल को छु लिया कहानी ने
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    Sanjeev Kumar "Guddu"
    20 सितम्बर 2018
    अजीमुद्दीन को भी सज़ा मिल ही गई, मार्मिक कहानी है, अंत सुखद रहा
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    नेहा बिंदल
    24 नवम्बर 2019
    इस समाज मे स्त्रियो की दुर्दशा के लिए स्त्री ही जिम्मेदार है। रेशमा जैसी औरते जब अपने ही घर मे सुरक्षित नही तो कोई स्त्री शशक्तिकरण अभियान बेटी बचाओ बेटो पढ़ाओ अभियान या फिर कोई नारीवादी अभियान क्या कर लेगा।। वाकई कोई स्त्री कितनी भी सशक्त क्यो न हो कहीं न कही ईस समाज में अबला बना ही दी जाती है।। निर्देश जी आपकी भाषा शैली अत्यंत ही सुंदर और सटीक है साथ ही आपका शब्दकोश भी बहुत सुंदर है। इस मार्मिक रचना पर आपको हार्दिक बधाई।