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जीवित प्रमाण पत्र

4.6
8357

काका बहुत सहनशील है ।उनके चेहरे पर कभी भी दुख की लकीरें उभरने का साहस नहीं कर सकी। हां जब कभी उनके भाई भतीजों को जरा सा भी दुख होता तो उसका असर उनकी बड़ी-बड़ी ओजस्वी आंखों पर ...

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लेखक के बारे में
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Dr Ashwini Shukla

मैं डॉ अश्विनी शुक्ला प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत हूँ। इससे पूर्व सर्व शिक्षा अभियान द्वारा संचालित ब्लॉक संशाधन केन्द्र हैदरगढ़ बाराबंकी में वरिष्ठ सह समन्वयक पर कार्यरत था।लगभग 9 वर्ष तक ब्लॉक समन्वयक हैदरगढ़ एवं 6 वर्ष तक सहसमन्वयक के पद पर कार्यरत रहा । वर्तमान में उत्कर्ष , बाल ज्योति , अभिनव , उत्थान शैक्षिक पत्रिकाओ का परिषदीय प्रकाशन तथा स्पंदन व विचार दर्शन नामक दो पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं । समसामयिक विषयों के साथ शैक्षिक व सामाजिक मुद्दों पर मन के भावों को व्यक्त कर हल्का होने का प्रयास करता हूँ।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Runa Agarwal
    14 अगस्त 2018
    ant kuch adhura laga ..par aapki kahani ne fir ye saabit kr dya k bade bujurgo ko apne jeete jee kabi apni sampatti bachcho k naam nahi krni chahiye..sabke ly khud ko bhulane wale ko ant me uske apno ne ni bhula diya..
  • author
    Vindu Upadhyay
    19 जुलाई 2018
    so sad issi liye kahte hai ki kitna bhi kr lo paraye ,paraye hi hote hai 😕😕😕😕
  • author
    Sonia Pratibha "Tani"
    26 सितम्बर 2018
    बहुत दर्द है जो शब्दो से भी झलक रहा है सुंदर
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    Runa Agarwal
    14 अगस्त 2018
    ant kuch adhura laga ..par aapki kahani ne fir ye saabit kr dya k bade bujurgo ko apne jeete jee kabi apni sampatti bachcho k naam nahi krni chahiye..sabke ly khud ko bhulane wale ko ant me uske apno ne ni bhula diya..
  • author
    Vindu Upadhyay
    19 जुलाई 2018
    so sad issi liye kahte hai ki kitna bhi kr lo paraye ,paraye hi hote hai 😕😕😕😕
  • author
    Sonia Pratibha "Tani"
    26 सितम्बर 2018
    बहुत दर्द है जो शब्दो से भी झलक रहा है सुंदर