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जीवन क्या

4.4
1663

जीवन क्या, इक सफ़र अनूठा साथ मिले, साथी सब छूटे | जीवन क्या, गोपी की गगरी कान्हा के कंकड़ से फूटे || जीवन क्या, एक नदी पुरानी बहा किये, सब साथ लिए | जीवन क्या, एक रात अँधेरी हो गए स्याह, जो दिए जले ...

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लेखक के बारे में

रणजीत प्रताप सिंह प्रतिलिपी के सह-संस्थापक हैं, उन्होने कमप्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग एवम एम.बी.ए भी किया हुआ है। प्रतिलिपी से पहले वे सिटी बैंक(Citibank) एवम वोदाफोन(Vodafone) में काम कर चुके हैं। लेकिन इन सबसे अधिक वे अपने आप को एक पाठक के तौर पर पहचानते हैं, वे लेखक या रचनाकार बिल्कुल नहीं, लेकिन कभी कभी चंद पंक्तियां लिख देते हैं।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    राहुल रंजन
    20 मई 2015
    beautifully written!
  • author
    गरिमा वर्मा
    11 जनवरी 2017
    it's aewsome
  • author
    Gokul
    31 मई 2015
    Nice poem :)
  • author
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  • author
    राहुल रंजन
    20 मई 2015
    beautifully written!
  • author
    गरिमा वर्मा
    11 जनवरी 2017
    it's aewsome
  • author
    Gokul
    31 मई 2015
    Nice poem :)