कॉलेज का पहला साल ही ख़तम हुआ था, और अचानक दिल का दौरा पड़ने से उसके सर से पिता का साया उठ गया। माँ ज्यादा पढ़ी लिखी नही थी। सुहाग उजड़ जाने से सोचने समझने की जो थोड़ी बहुत क्षमता थी भी वो भी ...
जीवन के कड़वे यथार्थ और मानव की सशक्त जीवंतता को व्याख्यायित करती कथा. बेटा हो या बेटी - परिवार को संकट से उबारने वाली संतान ही वास्तव में संतान कहलाने की अधिकारी है। सार्थक संदेश प्रसारित करती रचना हेतु हार्दिक बधाई ।
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जीवन के कड़वे यथार्थ और मानव की सशक्त जीवंतता को व्याख्यायित करती कथा. बेटा हो या बेटी - परिवार को संकट से उबारने वाली संतान ही वास्तव में संतान कहलाने की अधिकारी है। सार्थक संदेश प्रसारित करती रचना हेतु हार्दिक बधाई ।
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