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लघुकथा - जीवन चक्र

4.6
1331

कॉलेज का पहला साल ही ख़तम हुआ था, और अचानक दिल का दौरा पड़ने से उसके सर से पिता का साया उठ गया। माँ ज्यादा पढ़ी लिखी नही थी। सुहाग उजड़ जाने से सोचने समझने की जो थोड़ी बहुत क्षमता थी भी वो भी ...

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लेखक के बारे में
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akanksha pandey

जज़्बात जो दफ्न हैं, सीने में मेरे। लफ्ज़ दे दू इन्हे खुद दफ्न होने से पहले।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    20 जून 2022
    जीवन के कड़वे यथार्थ और मानव की सशक्त जीवंतता को व्याख्यायित करती कथा. बेटा हो या बेटी - परिवार को संकट से उबारने वाली संतान ही वास्तव में संतान कहलाने की अधिकारी है। सार्थक संदेश प्रसारित करती रचना हेतु हार्दिक बधाई ।
  • author
    सुनील तिवारी
    08 जून 2021
    बहुत भावुक कर देने वाली कहानी लिखी आपने। वर्णन से यह सिद्ध होता है परिश्रम ही जीवन में सफलता प्राप्त करने का रास्ता है। उत्कृष्ट
  • author
    Yogesh Sing
    03 दिसम्बर 2020
    muja is kahani ma yaha acha laga ki jvan ak cahakar ha gisma ham najana kyu gumta rah jata ha
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    20 जून 2022
    जीवन के कड़वे यथार्थ और मानव की सशक्त जीवंतता को व्याख्यायित करती कथा. बेटा हो या बेटी - परिवार को संकट से उबारने वाली संतान ही वास्तव में संतान कहलाने की अधिकारी है। सार्थक संदेश प्रसारित करती रचना हेतु हार्दिक बधाई ।
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    सुनील तिवारी
    08 जून 2021
    बहुत भावुक कर देने वाली कहानी लिखी आपने। वर्णन से यह सिद्ध होता है परिश्रम ही जीवन में सफलता प्राप्त करने का रास्ता है। उत्कृष्ट
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    Yogesh Sing
    03 दिसम्बर 2020
    muja is kahani ma yaha acha laga ki jvan ak cahakar ha gisma ham najana kyu gumta rah jata ha